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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/२५

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जाओगे और वलभद्रसिंह का पता क्योंकर लगाओगे। क्या करोगे?

भूतनाथ--(ताज्जुब से) वह क्या?

गोपालसिंह--बस काशी में मनोरमा का मकान तुम्हारा सब से पहला ठिकाना होगा।

भूतनाथ--बस अब ठीक है, आपने खूब समझा और अब मुझे विश्वास हो गया कि इस काम में आप मेरी बहुत कुछ मदद कर सकते हैं मगर आश्चर्य है कि आप किसी तरह की सहायता नहीं करते।

गोपालसिंह--खैर, अब हम तुमसे साफ-साफ कह देना ही अच्छा समझते हैं। कृष्ण जिन्न से और मुझसे निःसन्देह दोस्ती थी और वह अब भी मुझ से प्रेम रखता है मगर किसी कारण से मेरी तबीयत उससे खट्टी हो गई और मैं कसम खा चुका हूँ कि जिस काम में वह पड़ेगा उसमें मैं दखल न दूंगा चाहे वह काम मेरे ही फायदे का क्यों न हो या मदद न देने के सबब से मेरा कितना ही बड़ा नुकसान क्यों न हो या मेरी जान ही क्यों न चली जाय। बस यही सबब है कि मैं तुम्हारी मदद नहीं करता।

भूतनाथ--(कुछ सोचकर) अच्छा तो फिर मुझे आज्ञा दीजिये कि मैं जाऊँ और बलभद्रसिंह का पता लगाने के लिए उद्योग करूँ।

गोपालसिंह--जाओ, ईश्वर तुम्हारी मदद करे।

भूतनाथ सलाम करके कमरे के बाहर चला गया। उसके जाने के बाद गोपाल- सिंह को हँसी आई और उन्होंने आप ही आप धीरे से कहा, "इसने जरूर सोचा होगा कि गोपालसिंह पूरा बेवकूफ या पागल है!"

भूतनाथ महल की ड्यौढी पर आया जहाँ अपने साथी को छोड़ गया था और उसे साथ लेकर शहर के बाहर निकल गया। जब वे दोनों आदमी मैदान में पहुँचे जहाँ चारों तरफ सन्नाटा था, तो भूतनाथ के साथी ने पूछा, "कहिये, राजा गोपालसिंह की मुलाकात का क्या नतीजा निकला?"

भूतनाथ--कुछ भी नहीं, मैं व्यर्थ ही आया।

आदमी--सो क्यों?

भूतनाथ--उन्होंने किसी प्रकार की मदद देने से इनकार किया।

आदमी--बड़े आश्चर्य की बात यह काम तो वास्तव में उन्हीं का है।

भूतनाथ--सब कुछ है मगर'

आदमी--तो क्या लक्ष्मीदेवी का पता लगने से वे खुश नहीं हैं?

भूतनाथ--मेरी समझ में कुछ नहीं आता कि वे खुश हैं या नाराज, न तो उनके चेहरे पर किसी तरह की खुशी दिखाई दी न रंज। हँसना तो दूर रहा वे लक्ष्मीदेवी, बलभद्रसिंह, मायारानी और कृष्णजिन्न का किस्सा सुनकर मुस्कुराये भी नहीं, यद्यपि कई बातें ऐसी थीं कि जिन्हें सुनकर उन्हें अवश्य हँसना चाहिए था।

आदमी--क्या उनके मिजाज में कुछ फर्क पड़ गया है।

भूतनाथ--मालूम तो ऐसा ही होता है, बल्कि मैं तो समझता हूँ कि वे पागल हो गये हैं। जब मैंने उनसे पूछा कि, "राजा वीरेन्द्रसिंह या लक्ष्मीदेवी से मिलने के लिए