आप रोहतासगढ़ जायेंगे ?" तो उन्होंने कहा, "नहीं जब तक राजा वीरेन्द्रसिंह न बुला- वेंगे मैं न जाऊँगा।" भला यह भी कोई बुद्धिमानी की बात है!
आदमी--मालूम होता है वे सनक गये हैं।
भूतनाथ--या तो वे सनक हो गये हैं और या फिर कोई भारी धूर्तता करना चाहते हैं। खैर जाने दो, इस समय तो भूतनाथ स्वतन्त्र है फिर जो होगा देखा जायेगा। अब मुझे किसी ठिकाने बैठकर अपने आदमियों का इन्तजार करना चाहिए।
आदमी--तब उसी कुटी में चलिए, किसी न किसी से मुलाकात हो ही जायगी।
भूतनाथ--(हँस कर) अच्छा देखो तो सही भूतनाथ क्या-क्या करता है और कैसे-कैसे खेल-तमाशे दिखाता है।
7
अब हम थोड़ा-सा हाल लक्ष्मीदेवी की शादी का लिखना आवश्यक समझते हैं।
जब लक्ष्मीदेवी की मां जहरीली मिठाई के असर से मर गई (जैसा कि ऊपर के लेख से हमारे पाठकों को मालूम हुआ होगा) तब लक्ष्मीदेवी की सगी मौसी जो विधवा थी और अपनी ससुराल में रहा करती थी बुला ली गई और उसने बड़े लाड़-प्यार से लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाड़िली की परवरिश शुरू की और बड़ी दिलजमई तथा दिलासे से उन तीनों को रखा। परन्तु बलभद्रसिंह स्त्री के मरने से बहुत ही उदास और विरक्त हो गया था। उसका दिल गृहस्थी तथा व्यापार की तरफ नहीं लगता था और वह दिन-रात इसी विचार में पड़ा रहता था कि किसी तरह तीनों लड़कियों की शादी हो जाय और वे सब अपने-अपने ठिकाने पहुँच जाये तो उत्तम हो। लक्ष्मीदेवी की बात- चीत तो राजा गोपालसिंह के साथ तय हो चुकी थी परन्तु कमलिनी और लाड़िली के विषय में अभी कुछ निश्चय नहीं हो पाया था।
लक्ष्मीदेवी की माँ को मरे जब लगभग सोलह महीने हो चुके तब उसकी शादी का इन्तजाम होने लगा। उधर राजा गोपालसिंह और इधर बलभद्रसिंह तैयारी करने लगे। यह बात पहले ही से तै पा चुकी थी कि राजा गोपालसिंह बारात सजाकर बल- भद्रसिंह के घर न आवेंगे बल्कि बलभद्रसिंह को अपनी लड़की उनके घर ले जाकर ब्याह देनी होगी और आखिर ऐसा ही हुआ।
सावन का महीना और कृष्णपक्ष की एकादशी का दिन था जब बलभद्रसिंह अपनी लड़की को लेकर जमानिया पहुंचे। उसके दूसरे या तीसरे दिन शादी होने वाली थी, और उधर कम्बख्त दारोगा ने गुप्त रीति से हेलासिंह और उसकी लड़की मुन्दर को बुलाकर अपने मकान में छिपा रखा था। बलभद्रसिंह और दारोगा से बड़ी दोस्ती थी और बलभद्रसिंह दारोगा का बड़ा विश्वास करता था, मगर अफसोस, रुपया जो चाहे सो करावे। इसकी ठण्डी आँच को बर्दाश्त करना किसी ऐसे-वैसे दिलावर का काम