सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
31
 

तरह का गुमान तक न होने पावे। इस काम में उसने एक दोस्त की मदद ली जिसका नाम जैपालसिंह था और जिसका हाल आगे चलकर मालूम होगा।



8

हम ऊपर लिख आये हैं कि लक्ष्मीदेवी और बलभद्रसिंह अजायबघर के किसी तहखाने में कैद किए गए थे। मगर मायारानी और हेलासिंह इस बात को नहीं जानते थे कि उन दोनों को दारोगा ने कहाँ कैद कर रखा है।

इसके कहने की कोई आवश्यकता नहीं कि बलभद्रसिंह और लक्ष्मीदेवी कैदखाने में क्योंकर मुसीबत के दिन काटते थे। ताज्जुब की बात तो यह थी कि दारोगा अक्सर इन दोनों के पास जाता और बलभद्रसिंह के ताने और गालियाँ बरदाश्त करता। मगर उसे किसी तरह की शर्म नहीं आती थी। जिस घर में वे दोनों कैद थे उसमें रात और दिन का विचार करना कठिन था। उन दोनों से थोड़ी ही दूर पर एक चिराग दिन-रात जला करता था जिसकी रोशनी में वे एक-दूसरे के उदास और रंजीदा चेहरे को बराबर देखा करते थे।

जिस कोठरी में वे दोनों कैद थे उसके आगे लोहे का जंगला लगा हुआ था तथा सामने की तरफ एक दालान और दाहिनी तरफ एक कोठरी तथा बाईं तरफ ऊपर चढ़ जाने का रास्ता था। एक दिन आधी-रात के समय एक खटके की आवाज को सुनकर लक्ष्मीदेवी, जो एक मामूली कम्बल पर सोई हुई थी उठ बैठी और सामने की तरफ देखने लगी। उसने देखा कि सामने से सीढ़ियाँ उतरकर चेहरे पर नकाब डाले हुए एक आदमी आ रहा है। जब लोहे वाले जंगले के पास पहुँचा तो उसकी तरफ देखने लगा कि दोनों कैदी सोये हुए हैं या जागते हैं, मगर जब उसने लक्ष्मीदेवी को बैठे हुए पाया तो बोला, "बेटी, मुझे तुम दोनों की अवस्था पर बड़ा ही रंज होता है मगर क्या करूं लाचार हूँ, अभी तक तो कोई मौका मेरे हाथ नहीं लगा, मगर फिर भी मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि किसी-न-किसी दिन तुम दोनों को मैं इस कैद से जरूर छुड़ाऊँगा। आज इस समय मैं केवल यह कहने के लिए आया हूँ कि आज दारोगा ने बलभद्रसिंह को जो खाने की चीजें दी थीं, उनमें जहर मिला हुआ था। अफसोस कि बेचारा बलभद्रसिंह उसे खा गया, ताज्जुब नहीं कि वह इस दुनिया से घण्टे में कूचकर जाये, लेकिन यदि तू उसे जगा दे और जो कुछ मैं कहूँ करे तो निःसन्देह उसकी जान बच जायेगी।"

बेचारी लक्ष्मीदेवी के लिए पहले की मुसीबतें ही क्या कम थीं और इस खबर ने उस दिल पर क्या असर किया सो वही जानती होगी। वह घबराई हुई अपने बाप के पास गई जो एक कम्बल पर सो रहा था। उसने उसे उठाने की कोशिश की मगर उसका बाप न उठा, तब उसने समझा कि बेशक जहर ने उसके बाप की जान ले ली, मगर जब उसने नब्ज पर उँगली रक्खी तो नब्ज को तेजी के साथ चलता पाया। लक्ष्मी की आँखों