सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
38
 

10

9

भूतनाथ जब राजा गोपाल सिंह से बिदा हुआ, तो अपने शागिर्द को साथ लिये हुए शहर से बाहर निकला और बातचीत करता हुआ आधी रात जाते-जाते वह एक घने जंगल के बीचोंबीच में पहुंचा जहाँ एक साधारण ढंग की कुटी बनी हुई थी और उसके दरवाजे पर दो आदमी भी बैठे हुए धीरे-धीरे बातचीत कर रहे थे। वे दोनों भूतनाथ को देखते ही उठ खड़े हुए और सलाम करके बोले-

एक--क्या राजा गोपालसिंह से आपका कुछ काम निकला?

भूतनाथ--कुछ भी नहीं।

दूसरा--(आश्चर्य से) सो क्यों?

भूतनाथ--ठहरो, जरा दम ले लूं तो कहूँ और सब लोग कहाँ गये हैं?

एक--घूमने-फिरने गये हैं, आते ही होंगे!

भूतनाथ--अच्छा, कुछ खाने-पीने के लिए हो तो लाओ।

इतना सुनते ही एक आदमी कुटी के अन्दर चला गया और एक लम्बा-चौड़ा कम्बल ला कुटी के बाहर बिछा कर फिर अन्दर लौट गया। भूतनाथ उसी कम्बल पर बैठ गया। दूसरा आदमी कुछ खाने की चीजें और जल से भरा हुआ लोटा ले आया और उस आदमी को, जो भूतनाथ के साथ-ही-साथ यहाँ तक आया था, इशारा करके कुटी के अन्दर ले गया। भूतनाथ खा-पीकर निश्चिन्त हुआ ही था कि उसके बाकी आदमी भी जो कि इधर-उधर घूमने के लिए गए थे, आ पहुँचे और भूतनाथ को सलाम करने के बाद इशारा पाकर उसके सामने बैठ कर बातचीत करने लगे। इस जगह यह लिखने की कोई जरूरत नहीं कि इन लोगों में क्या-क्या बातें हुईं। रात भर सलाह और बातचीत करने के बाद भूतनाथ उन लोगों को समझा-बुझा और कई काम करने के लिए ताकीद करके सवेरा होते-होते अकेला वहाँ से रवाना हो गया और इन्द्रदेव के मकान की तरफ चल निकला।

दोपहर से कुछ ज्यादा दिन ढल चुका था जब भूतनाथ इन्द्रदेव की पहाड़ी पर जा पहुंचा और उस खोह के बाहर खड़ा होकर जो इन्द्रदेव के मकान में जाने का दरवाजा था इधर-उधर देखने लगा। किसी को न देखा तो एक पत्थर की चट्टान पर बैठ गया क्योंकि वह इन्द्रदेव के मकान में पहुँचने का रास्ता नहीं जानता था। हाँ, यह बात उसे जरूर मालूम थी कि इन्द्रदेव की आज्ञा के बिना या जब तक इन्द्रदेव का कोई आदमी अपने साथ न ले जाय कोई उस सुरंग को पार करके इन्द्र देव के पास नहीं पहुँच सकता। इसके पहले भी इन्द्र देव के पास जाने का भूतनाथ को मौका मिला था, मगर हर दफा इन्द्रदेव का आदमी भूतनाथ की आँखों पर पट्टी बांध कर ही उसे खोह के अन्दर ले गया था।

भूतनाथ घण्टे भर तक उसी चट्टान पर बैठा रहा, इसके बाद इन्द्र देव का एक आदमी खोह के बाहर निकला जो भूतनाथ को अच्छी तरह पहचानता था और भूतनाथ