पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/३९

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भी उसे जानता था। उस आदमी ने साहब-सलामत करने के बाद भूतनाथ से पूछा, "कहिये, आप कहाँ से आये ?"

भूतनाथ--आपके मालिक इन्द्रदेव से मिलने के लिए आया हूँ और बड़ी देर से यहाँ बैठा हूँ।

आदमी--तो क्या आपकी इत्तिला करनी होगी?

भूतनाथ--अवश्य।

आदमी--अच्छा तो आप थोड़ी देर तक और तकलीफ कीजिये, मैं अभी जाकर खबर करता हूँ।

इतना कहकर वह आदमी तुरन्त लौट गया। एक घण्टे के बाद वह और भी दो आदमियों को अपने साथ लिये हुए आया और भूतनाथ से बोला, “चलिये, मगर आँखों पर पट्टी बँधवाने की तकलीफ आपको उठानी पड़ेगी।" इसके जवाब में भूतनाथ यह कहकर उठ खड़ा हुआ, “सो तो मैं पहले ही से जानता हूँ।"

भूतनाथ की आँखों पर पट्टी बाँध दी गई और वे तीनों आदमी उसे अपने साथ लिये हुए इन्द्रदेव के पास जा पहुँचे। इन्द्रदेव के स्थान और उसके मकान की कैफियत हम पहले लिख चुके हैं इस लिए यहाँ पुनः न लिखकर असल मतलब पर ध्यान देते हैं।

जिस समय भूतनाथ इन्द्रदेव के सामने पहुँचा, उस समय इन्द्रदेव अपने कमरे में मसनद के सहारे बैठे हुए कोई ग्रंथ पढ़ रहे थे। भूतनाथ को देखते ही उन्होंने मुस्कुराकर कहा, "आओ-आओ भूतनाथ, अबकी तो बहुत दिनों पर मुलाकात हुई है !"

भूतनाथ--(सलाम करके) बेशक बहुत दिनों में मुलाकात हुई है। क्या कहूँ, जमाने के हेर-फेर ने ऐसे-ऐसे कुढंगे कामों में फंसा दिया और अभी तक फंसा रखा है कि मेरी कमजोर जान को किसी तरह छुटकारे का दिन नसीब नहीं होता और इसी मे आज बहुत दिनों पर आपके भी दर्शन हुए हैं।

इन्द्रदेव--(हँसकर) तुम्हारी और कमजोर जान ! जो भूतनाथ हजारों मजबूत आदमियों को भी नीचा दिखाने की ताकत रखता है वह कहे कि 'मेरी कमजोर जान !'

भूतनाथ–-बेशक ऐसा ही है। यद्यपि मैं अपने को बहुत-कुछ कर गुजरने लायक समझता था, मगर आजकल ऐसी आफत में जान फंसी हुई है कि अक्ल कुछ काम नहीं करती।

इन्द्रदेव--क्या, बात है ? कुछ कहो भी तो !

भूतनाथ--मैं यही सब कहने और आपसे ममद मांगने के लिए तो आया ही हूँ।

इन्द्रदेव--मदद मांगने के लिए!

भूतनाथ जी हाँ, आपसे बहुत बड़ी मदद की मुझे आशा है।

इन्द्रदेव--सो कैसे ? क्या तुम नहीं जानते कि मायारानी का तिलिस्मी दारोगा मेरा गुरुभाई है और वह तुम्हें दुश्मनी की निगाह से देखता है?

भूतनाथ---इन बातों को मैं खूब जानता हूँ और इतना जानने पर भी आपसे मदद लेने के लिए आया हूँ। इन्द्रदेव--यह तुम्हारी भूल है।