पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/४९

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तेजसिंह--(अपने बटुए में से कलमदान निकालकर और इन्द्रदेव के हाथ में देकर) लीजिए हाजिर है। मैं इसे हर वक्त अपने पास रखता हूँ, और उस समय की राह देखता हूँ जब इसके अद्भुत रहस्य का पता हम लोगों को लगेगा।

इन्द्रदेव--(कलमदान को अच्छी तरह देखकर) निःसन्देह भूतनाथ ने जो कुछ कहा ठीक है। अफसोस, कम्बख्तों ने बड़ा धोखा दिया। अच्छा, ईश्वर मालिक है!

लक्ष्मीदेवी--क्यों, यह वही कलमदान है न?

इन्द्रदेव--हाँ, तुम इसे वही कलमदान समझो। (क्रोध से लाल-लाल आँखें करके) ओफ, अब मुझसे बरदाश्त नहीं हो सकता और न मैं ऐसे काम में विलम्ब कर सकता हूँ ! (वीरेन्द्रसिंह से) क्या आप इस काम में मेरी सहायता कर सकते हैं?

वीरेन्द्रसिंह--जो कुछ मेरे किये हो सकता है, मैं उसे करने के लिए तैयार हूँ। मुझे बड़ी खुशी होगी जब मैं अपनी आँखों से बलभद्रसिंह को सही-सलामत देखूंगा।

इन्द्रदेव--और आप मुझ पर विश्वास भी कर सकते हैं?

वीरेन्द्रसिंह--हाँ, मैं तुम पर उतना ही विश्वास करता हूँ जितना इन्द्रजीत और आनन्द पर।

इन्द्रदेव--(हाथ जोड़ और गद्गद होकर) अब मुझे विश्वास हो गया कि अपने दोनों प्रेमियों को शीघ्र देखूंगा।

वीरेन्द्रसिंह--(आश्चर्य से) दूसरा कौन?

लक्ष्मीदेवी--(चौंककर) ओह, मैं समझ गई, हे ईश्वर, यह क्या, क्या मैं अपनी बहुत ही प्यारी 'इन्दिरा' को भी देखूंगी !

इन्द्रदेव--हाँ, यदि ईश्वर चाहेगा तो ऐसा ही होगा।

वीरेन्द्रसिंह--अच्छा यह बताओ कि अब तुम क्या चाहते हो?

इन्द्रदेव--मैं नकली बलभद्रसिंह, दारोगा और मायारानी को देखना चाहता हूँ और साथ ही इसके इस बात की आज्ञा चाहता हूँ कि उन लोगों के साथ मैं जैसा बर्ताव करना चाहूँ कर सकू या उन तीनों में से किसी को यदि आवश्यकता हो तो अपने साथ ले जा सकूं।

इन्द्रदेव की बात सुनकर वीरेन्द्रसिंह ने ऐसे ढंग से तेजसिंह की तरफ देखा और इशारे से कुछ पूछा कि सिवाय उनके और तेजसिंह के किसी दूसरे को मालूम न हुआ और जब तेजसिंह ने भी इशारे में ही कुछ जवाब दे दिया तब इन्द्रदेव की तरफ देखकर कहा, "वे तीनों कैदी सबसे बढ़कर लक्ष्मीदेवी के गुनहगार हैं जो तुम्हारी और हमारी धर्म की लड़की है। इसलिए उन कैदियों के विषय में जो कुछ तुमको पूछना या करना हो, उसकी आज्ञा लक्ष्मी देवी से ले लो, हमें किसी तरह का उज्र नहीं है।"

लक्ष्मी देवी--(प्रसन्न सोकर) यदि महाराज की मुझ पर इतनी कृपा है तो मैं कह सकती हूँ कि उन कैदियों में से, जिनकी बदौलत मेरी जिन्दगी का सबसे कीमती हिस्सा बर्बाद हो गया, जिसे मेरे चाचा चाहें, साथ ले जायें।

वीरेन्द्र सिंह--बहुत अच्छा ! (इन्द्रदेव से)क्या उन कैदियों को यहाँ हाजिर करने के लिए हुक्म दिया जाय ?