पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/४८

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रहने का विश्वास भी सभी से ज्यादा मुझी को हुआ, इसी तरह से बलभद्रसिंह का पता लगाने में मेरी बुद्धिं जितना काम कर सकती है, उतनी भूतनाथ की नहीं। (ऊँची साँस लेकर) अफसोस, आज के दो दिन पहले मुझे इस बात का स्वप्न में भी गुमान न था कि अपने प्यारे दोस्त बलभद्रसिंह के जीते रहने की खबर मेरे कानों तक पहुँचेगी और मुझे उनका पता लगाना होगा!

वीरेन्द्रसिंह--तुम्हारे ऐसा कहने से यह पाया जाता है कि बनिस्बत हम लोगों के तुमको भूतनाथ की बातों का ज्यादा यकीन हुआ है। और अगर ऐसा ही है तो आज के बहुत दिन पहले तुमको या किसी और को इस बात की इत्तिला न देने का इलजाम भी भूतनाथ पर लगाया जायगा!

इन्द्रदेव--जी नहीं, इस घटना के पहले भूतनाथ को भी बलभद्रसिंह के जीते रहने का विश्वास न था। हाँ, कुछ शक-सा हो गया था, उस शक को यकीन के दर्जे तक पहुँ- चाने के लिए भूतनाथ ने बहुत उद्योग किया और वही उद्योग इस समय उसका दुश्मन हो रहा है। सच तो यह है कि अगर इसके पहले बलभद्रसिंह के जीते रहने की खबर भूत- नाथ देता भी तो मुझे विश्वास न होता और मैं उसे झूठा या दगाबाज समझता।

वीरेन्द्रसिंह--(मुस्कुराकर) तुम्हारी बातें तो और भी उलझन पैदा करती हैं। मालूम होता है कि भूतनाथ की बातों के अतिरिक्त और भी कोई सच्चा सबूत बलभद्र- सिंह के जीते रहने के बारे में तुम्हें मिला है और भूतनाथ वास्तव में उन दोषों का दोषी नहीं है जो कि उसकी दस्तखती चिट्ठियों के पढ़ने से मालूम हुआ है।

इन्द्रदेव--बेशक ऐसा ही है।

लक्ष्मीदेवी--(ताज्जुब से) तो क्या किसी और ने भी मेरे पिता के जीते रहने की खबर आपको दी है?

इन्द्रदेव--नहीं।

लक्ष्मीदेवी--तो आज कैसे भूतनाथ के कहने का इतना विश्वास आपको हुआ जब कि आज के पहले उसके कहने का कुछ भी असर न होता?

वीरेन्द्रसिंह--मैं भी यही सवाल तुमसे करता हूँ।

इन्द्रदेव--भूतनाथ के इस कहने ३.५७ कृष्णजिन्न ने एक कलमदान आपके सामने पेश किया था जिस पर मीनाकारी की तान तस्वीरें बनी हुई थी और उसे देखते ही नकली बलभद्रसिंह बदहवास हो गया" मुझे असली बलभद्रसिंह के जीते रहने का विश्वास दिला दिया। क्या यह बात ठीक है ? क्या कृष्ण जिन्न ने कोई ऐसा कलमदान पेश किया है?

वीरेन्द्रसिंह--हां, एक कलमदान'

लक्ष्मीदेवी--(बात काटकर) हाँ-हाँ, मेरे प्यारे चाचा, वही कलमदान जो मेरी बहुत ही प्यारी चाची ने मुझे विवाह के'

इतना कहते-कहते लक्ष्मीदेवी का गला भर आया और वह रोने लगी।

इन्द्रदेव--(व्याकुलता से) मैं उस कलमदान को शीघ्र ही देखना चाहता हूँ। (तेजसिंह से) आप कृपा कर उसे शीघ्र ही मँगवाइये।

च० स०-4-3