पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/५९

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यद्यपि भूतनाथ इन्द्रदेव के मकान में रोक लिया गया और वह भी उस मकान से बाहर जाने का रास्ता न जानने के कारण लाचार और चुप हो रहा, मगर समय और आवश्यकता ने वहाँ उसे चुपचाप बैठने न दिया और मकान से बाहर निकलने का मौका उसे मिल ही गया।

जब इन्द्रदेव रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हो गया, उसके दूसरे दिन दोपहर के समय सरयूसिंह, जो इन्द्रदेव का बड़ा विश्वासी ऐयार था, भूतनाथ के पास आया और बोला, "क्यों भूतनाथ, तुम चुपचाप बैठे क्या सोच रहे हो हो?'

भूतनाथ--बस मैं अपनी बदनसीबी पर रोता और झख मारता हूँ, मगर इसके साथ ही इस बात को सोच रहा हूँ कि आदमी को दुनिया में किस ढंग से रहना चाहिए।

सरयूसिंह--क्या तुम अपने को बदनसीब समझते हो?

भूतनाथ--क्यों नहीं ! तुम जानते हो कि वर्षों से मैं राजा वीरेन्द्रसिंह का काम कैसी ईमानदारी और नेकनीयती के साथ कर रहा हूँ। और क्या यह बात तुमसे छिपी हुई है कि उस सेवा का बदला आज मुझे क्या मिल रहा है?

सरयूसिंह--(पास बैठकर) मैं सब-कुछ जानता हूँ, मगर भूतनाथ, मैं फिर भी यह कहने से बाज न आऊँगा कि आदमी को कभी हताश न होना चाहिए और हमेशा बुरे कामों की तरफ से अपने दिल को रोककर नेक काम में तन-मन-धन से लगे रहना चाहिए। ऐसा करने वाला निःसन्देह सुख भोगता है चाहे बीच-बीच में उसे थोड़ीबहुत तकलीफ उठानी पड़ी परंतु आजकल के दुखों से तुम हताश मत मुझे और राजेंद्र सिंह तथा उनकी तरह सच्चे लोगों के साथ नेकी करने से अपने दिल को लेकर तुम ऐसे तैयार हो और यादों में नाम है या फिर भी दो चार दृष्टो की आगे की कार्रवाई से आप पढ़ने वाली आशा का खुलासा कर उदास हो जाओ तो बड़े आश्चर्य की बात है।

भूतनाथ--नहीं मेरे दोस्त, मैं हताश होने वाला आदमी नहीं हूँ, मैं तो केवल समय का हेर-फेर देखकर अफसोस कर रहा हूं। निःसंदेह मुझसे दो-एक काम बुरे हो गए और उसका बदला भी मैं पा चुका हूं मगर फिर भी मेरा दिल यह कहने से बाज नहीं आता कि मेरे माथे से कलंक का टीका अभी तक साफ नहीं हुआ, अतएव तू नेकी करता था और भूलता जा।

सरयूसिंह--शाबाश, मैं केवल तुम्ही को नहीं बल्कि तुम्हारे दिल को भी अच्छी तरह जानता हूँ और वे बातें भी मुझसे छिपी हुई नहीं हैं जिनका इलजाम तुम पर लगाया गया है। यद्यपि मैं एक ऐसे सरदार का ऐयार हूँ जो किसी के नेक-बद से सरो- कार नहीं रखता और इस स्थान को देखने वाला कह सकता है कि वह दुनिया के पर्दे के बाहर रहता है मगर फिर भी मैं काम ज्यादा न होने के सबब से घूमता-फिरता और नामी ऐयारों की कार्रवाइयों को देखा-सुना करता हूँ और यही सबब है कि मैं उन भेदों को भी कुछ जानता हूँ जिसका इल्जाम तुम पर लगाया गया है।

भूतनाथ--(आश्चर्य से) क्या तुम उन भेदों को जानते हो?

सरयूसिंह--बखूबी तो नहीं, मगर कुछ-कुछ।