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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/६३

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दूर पर एक जवान, जिसका नाम धन्नू सिंह था, हाथ में नंगी तलवार लिए हुए पहरा दे रहा था और यही जवान उन दो-सौ सिपाहियों का अफसर था जो इस समय जंगल में मौजूद थे। रात हो जाने के कारण कहीं-कहीं रोशनी हो रही थी और एक लालटेन उस जगह जल रही थी, जहाँ शिवदत्त और कल्याणसिंह बैठे हुए आपस में वातें कर रहे थे।

शिवदत्त--हमारी फौज ठिकाने पहुंच गई होगी।

कल्याणसिंह--बेशक।

शिवदत्त--क्या इतने आदमियों का रोहतासगढ़ तहखाने के अन्दर समा जाना सम्भव है ?

कल्याणसिंह--(हँस कर) इसके दूने आदमी भी अगर हों तो उस तहखाने में अँट सकते हैं।

शिवदत्त--अच्छा तो उस तहखाने में घुसने के बाद क्या-क्या करना होगा ?

कल्याणसिंह--उस तहखाने के अन्दर चार कैदखाने हैं, पहले उन कैदखानों को देखेंगे, अगर उनमें कोई कैदी होगा तो उसे छुड़ा कर अपना साथी बनावेंगे। मायारानी और उसका दारोगा भी उन्हीं कैदखानों में से किसी में जरूर होंगे और छूट जाने पर उन दोनों से बड़ी मदद मिलेगी।

शिवदत्त--बेशक बड़ी मदद मिलेगी, अच्छा तब ?

कल्याणसिंह--अगर उस समय वीरेन्द्रसिंह वगैरह तहखाने की सैर करते हुए मिल जायेंगे, तो मैं उन लोगों के बाहर निकलने का रास्ता बन्द करके फंसाने की फिक्र करूँगा तथा आप फौजी सिपाहियों को लेकर किले के अन्दर चले जाइयेगा, और मर्दा- नगी के साथ किले में अपना दखल कर लीजियेगा।

शिवदत्त--ठीक है मगर यह कब संभव है कि उस समय वीरेन्द्रसिंह वगैरह तह- खाने की सैर करते हुए हम लोगों को मिल जायें ?

कल्याणसिंह--अगर न मिलेंगे तो न सही, उस अस्वथा में हम लोग एक साथ किले के अन्दर आना दखल नमागे और वीरेन्द्रसिंह तथा उनके ऐयारों को गिरफ्तार कर लेंगे। यह तो आप सुन ही चुके हैं कि इस समय रोहतासगढ़ किले में फौजी सिपाही पाँच सौ से ज्यादा नहीं हैं, सो भी बेफिक्र बैठे होंगे और हम लोग यकायक हर तरह से तैयार जा पहुँचेगे। मगर मेरा दिल यही गवाही देता है कि वीरेन्द्रसिंह वगैरह को हम लोग तह- खाने में सैर करते हुए अवश्य देखेंगे क्योंकि वीरेन्द्रसिंह ने, जहाँ तक सुना गया है, अभी तक तहखाने की सैर नहीं की, अबकी दफे जो वह वहाँ गए हैं, तो जरूर तहखाने की सैर करेंगे और तहखाने की सैर दो-एक दिन में नहीं हो सकती, आठ-दस दिन अवश्य लगेंगे, और सैर करने का समय भी रात ही को ठीक होगा, इसी से कहते हैं कि अगर वे लोग तहखाने में मिल जायें, तो ताज्जुब नहीं।

शिवदत्त--अगर ऐसा हो तो क्या बात है। मगर सुनो तो, कदाचित् वीरेन्द्रसिंह तहखाने में मिल गए तो तुम तो उनके फंसाने की फिक्र में लगोगे और मुझे किले के अन्दर घुसकर दखल जमाना होगा। मगर मैं उस तहखाने के रास्ते को जानता ही नहीं। तुम कह चुके हो कि तहखाने में आने-जाने के लिए कई रास्ते हैं और वे पेचीले हैं अत: