पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/६६

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चढ़ बैठा। अगर वह औरत अपने कुत्ते को न डाँटती और न रोकती तो बस मैं आज ही समाप्त हो चुका था ! (गर्दन और पीठ के कपड़े दिखाकर) देखिए मेरे तमाम कपड़े उस कुत्ते के बड़े-बड़े नाखूनों की बदौलत फट गए और बदन भी छिल गया, देखिये, यह मेरे ही खून से मेरे कपड़े तर हो गये हैं।

शिवदत्त--(भय और घबराहट से)ओफ-ओह धन्नूसिंह, तुम तो जख्मी हो गये! तुम्हारे पीठ पर के कपड़े सब लहू से तर हो रहे हैं!

धन्नूसिंह--जी हां महाराज, बस आज मैं काल के मुंह से निकलकर आया हूँ, मगर अभी तक मुझे इस बात का विश्वास नहीं होता कि मेरी जान बचेगी।

कल्याणसिंह--सो क्यों?

धन्नूसिंह--जवाब देने के लिए लौट कर मुझे फिर उसके पास जाना होगा।

कल्याणसिंह--सो क्यों ? अगर न जाओ तो क्या हो? क्या हमारी फौज में भी आकर वह उत्पात मचा सकती है?

इतने ही में दो-तीन भयानक कुत्तों के भौंकने की आवाज थोड़ी ही दूर पर से आई जिसे सुनते ही धन्नूसिंह थर-थर कांपने लगा। शिवदत्त तथा कल्याणसिंह भी डर कर उठ खड़े हुए और कांपते हुए उस तरफ देखने लगे। उसी समय बदहवास और घबराई हुई मनोरमा भी वहां आ पहुंची और बोली, "अभी मैंने भूतनाथ की सूरत देखी है, वह बेखौफ मेरी पालकी के पास आकर कह गया है कि आज तुम लोगों की जान लिये बिना मैं नहीं रह सकता ! अब क्या होगा? उसका बेखौफ यहां चले तक आना मामूली बात नहीं है !"