पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/६७

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चन्द्रकांता सन्तति

चौदहवां भाग

1

धन्नूसिंह की बातों ने शिवदत्त और कल्याणसिंह को ऐसा बदहवास कर दिया कि उन्हें बात करना मुश्किल हो गया। शिवदत्त सोच रहा था कि कुछ देर की सच्ची मोहलत मिले तो मनोरमा से उसकी बहिन का हाल पूछे, मगर उसी समय घबराई हुई मनोरमा खुद ही वहाँ आ पहुंची और उसने जो कुछ कहा वह और भी परेशान करने वाली बात थी। आखिर शिवदत्त ने मनोरमा से पूछा, "क्या तुमने अपनी आँखों से भूतनाथ को देखा?"

मनोरमा हाँ,--मैंने स्वयं देखा और उसने वह बात मुझी से कही थी जो मैं आप से कह चुकी हूँ?

शिवदत्त--क्या वह तुम्हारी पालकी के पास आया था?

मनोरमा--हाँ, मैं माधवी से बातें कर रही थी कि वह निडर होकर हम लोगों के पास आ पहुँचा और धमका कर चला गया।

शिवदत्त–-तो तुमने आदमियों को ललकारा क्यों नहीं?

मनोरमा--आप भूतनाथ को नहीं जानते कि वह कैसा भयानक आदमी है ? क्या वे तीन-चार आदमी भूतनाथ को गिरफ्तार कर लेते जो मेरी पालकी के पास थे?

शिवदत्त--ठीक है, वह बड़ा ही भयानक ऐयार है, दो-चार क्या, दस-पाँच आदमी भी उसे गिरफ्तार नहीं कर सकते। मैं तो उसके नाम से कांप जाता हूँ। ओफ, वह समय मुझे कदापि नहीं भूल सकता जब उसने 'रूहा' बनकर मुझे अपने चंगुल में फंसा लिया था, अपने चेले को भीमसेन की सूरत में ऐसा बनाया कि मैं भी पहचान ही न सका। मगर बड़े आश्चर्य की बात यह है कि आज वह असली सूरत में तुम्हें दिखाई पड़ा। उसका इस तरह चले आना मामूली बात नहीं है।

मनोरमा--जितना मैं उसका हाल जानती हूँ आप उसका सोलहवां हिस्सा भी

1. देखिए चन्द्रकान्ता सन्तति, छठवां भाग, दूसरा बयान।