पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/६८

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न जानते होंगे, और यही सबब है कि इस समय डर के मारे मेरा कलेजा काँप रहा है, फिर जहाँ तक मैं खयाल करती हूँ वह अकेला भी नहीं है।

शिवदत्त--नहीं-नहीं, वह अकेला कदापि न होगा। (धन्नूसिंह की तरफ इशारा करके) इसने भी एक ऐसी ही भयानक खबर मुझे सुनाई है।

मनोरमा--(ताज्जुब से) वह क्या?

शिवदत्त--इसका हाल धन्नूसिंह की जुबानी ही सुनना ठीक होगा। (धन्नूतिह से) हाँ, तुम जरा उन बातों को दोहरा तो जाओ!

धन्नूसिंह--बहुत खूब।

इतना कहकर धन्नूसिंह उन वातों को ऐसे ढंग से दोहरा गया कि मनोरमा का कलेजा कांप उठा और शिवदत्त तथा कल्याणसिंह पर पहले से भी ज्यादा असर पड़ा।

शिवदत्त--(मनोरमा से) क्या वास्तव में वह तुम्हारी बहिन है?

मनोरमा--राम-राम, ऐसी भयानक राक्षसी मेरी बहिन हो सकती है? असल वात तो यह है कि मैं अकेली हूँ, मेरी न कोई बहिन है, न भाई।

धन्नूसिंह--तब जरा खड़े-खड़े उसके पास चली चलो और जो कुछ वह पूछे, उसका जवाब दे दो।

मनोरमा--(रंज होकर) मैं क्यों उसके पास जाने लगी ! जाकर कह दो कि मनोरमा नहीं आती।

धन्नूसिंह--(खैरखाही दिखाने के ढंग से) मालूम होता है कि तुम अपने साथ ही साथ हमारे मालिक पर भी आफत लाना चाहती हो। (शिवदत्त से) महाराज, राक्षसी ने जितनी बातें मुझसे कहीं मैं अदब के खयाल से अर्ज नहीं कर सकता, तथापि एक बात केवल आप ही से कहने की इच्छा है।

धन्नूसिंह की बात सुनकर मनोरमा को डर के साथ ही साथ क्रोध भी चढ़ आया और वह कड़ी निगाह से धन्नू सिंह की तरफ देखकर बोली, "महाराज के खैरखाह एक तुम्हीं तो दिखाई देते हो ! इतनी बड़ी फौज की अफसरी करने के लिए क्यों मरे जाते हो जो एक औरत के सामने जाने की हिम्मत नहीं है?"

धन्नूसिंह--मेरी हिम्मत तो लाखों आदमियों के बीच घुसकर तलवार चलाने की है, मगर केवल तुम्हारे सबब से अपने मालिक पर आफत लाने और अपनी जान देने का हौसला कोई बेवकूफ आदमी भी नहीं कर सकता। (शिवदत्त से)तिस पर भी महाराज जो। आज्ञा दें उसे करने के लिए मैं तैयार हूँ। यदि आग में कूद पड़ने के लिए भी कहें तो क्षण- भर देर लगाने पर लानत भेजता हूँ, परन्तु मेरी बात सुनकर तब जो चाहें आज्ञा दें !

इतना सुनकर शिवदत्त उठ खड़ा हुआ और धन्नू सिंह को अपने पीछे आने का इशारा करके दूर चला गया जहाँ से उनकी बातचीत कोई दूसरा नहीं सुन सकता था।

शिवदत्त-–हाँ धन्नूसिंह, अब कहो, क्या कहते हो?

धन्नूसिंह--महाराज क्षमा करें, रंज न हों ! मैं सरकार का नमकख्वार गुलाम हूँ इसलिए सिवाय सरकार की भलाई के मुझे और कुछ मैं यह नहीं चाहता मनोरमा के सबब से, जो आपकी कुछ भी भलाई नहीं कर सकती, बल्कि आपके सबब