पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/७२

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को अच्छी तरह समझा दिया। दो घोड़े चुपचुपाते ही तैयार किये गये, मनोरमा ने मर्दानी पोशाक पालकी के अन्दर बैठकर पहनी और घोड़े पर सवार हो धन्नूसिंह से साथ रवाना हो गई। धन्नूसिंह की सवारी का घोड़ा बनिस्बत मनोरमा के घोड़े से तेज और ताकत- वर था।


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मनोरमा और धन्नूसिंह घोड़ों पर सवार होकर तेजी के साथ वहाँ से रवाना हुए और चार कोस तक बिना कुछ बातचीत किए चले आए। जब ये दोनों एक ऐसे मैदान में पहुंचे जहां बीचोंबीच में एक बहुत बड़ा आम का पेड़ और उसके चारों तरफ आधा कोस का मैदान साफ था यहाँ तक कि सरपत, जंगली बेर या पलास का भी कोई पेड़ न था जिसका होना जंगल या जंगल के आसपास आवश्यक समझा जाता है, तब धन्नू सिंह ने अपने घोड़े का मुंह उसी आम के पेड़ की तरफ यह कहके फेरा--'मेरे पेट में कुछ दर्द हो रहा है इसलिए थोड़ी देर तक इस पेड़ के नीचे ठहरने की इच्छा होती है।"

मनोरमा--ठहर तो जाओ, मगर खौफ है कि कहीं भूतनाथ न आ पहुँचे।

धन्नूसिंह--अब भूतनाथ के आने की आशा छोड़ो क्योंकि जिस राह से हम लोग आये हैं वह भूतनाथ को कदापि मालूम न होगी। मगर मनोरमा, तुम तो भूतनाथ से इतना डरती हो कि'

मनोरमा--(बात काटकर) भूतनाथ निःसन्देह ऐसा ही भयानक ऐयार है। पर थोड़े ही दिन की बात है कि जिस तरह आज मैं भूतनाथ से डरती हूँ उससे ज्यादा भूतनाथ मुझसे डरता था।

धन्नूसिंह--हाँ, जब तक उसके कागजात तुम्हारे या नागर के कब्जे में थे !

मनोरमा--(चौंककर, ताज्जुब से) क्या यह हाल तुमको मालूम है?

धन्नूसिंह--हाँ, बहुत अच्छी तरह।

मनोरमा--सो कैसे?

इतने ही में वे दोनों उस पेड़ के नीचे पहुँच गये और धन्नूसिंह यह कहकर घोड़े से नीचे उतर गया कि 'अब जरा बैठ जायें तो कहें।'

मनोरमा भी घोड़े से नीचे उतर पड़ी। दोनों घोड़े लम्बी बागडोर के सहारे पेड़ के साथ बांध दिए और जीनपोश बिछाकर दोनों आदमी जमीन पर बैठ गये। रात आधी से ज्यादा जा चुकी थी और चन्द्रमा की विमल चांदनी, जिसका थोड़ी ही देर पहले कहीं नाम-निशान भी न था, बड़ी खूबी के साथ चारों तरफ फैल रही थी।

मनोरमा हाँ, अब बताओ कि भूतनाथ के कागजात का हाल तुम्हें कैसे मालूम हुआ ?

धन्नूसिंह--मैंने भूतनाथ की ही जुबानी सुना था।