पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/७३

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मनोरमा--हैं ! क्या तुमसे और भूतनाथ से जान-पहचान है ?

धन्नूसिंह--बहुत अच्छी तरह।

मनोरमा--तो भूतनाथ ने तुमसे यह भी कहा होगा कि उसने अपने कागजात नागर के हाथ से कैसे पाये!

धन्नूसिंह--हाँ, भूतनाथ ने मुझसे वह किस्सा भी बयान किया था, क्या तुमको वह हाल मालूम नहीं हुआ?

मनोरमा–-मुझे वह हाल कैसे मालूम होता ? मैं तो मुद्दत तक कमलिनी के कैदखाने में सड़ती रही और जब वहाँ से छूटी तो दूसरे ही फेर में पड़ गई। मगर तुम जब वह सब हाल जानते ही हो तो फिर जान-बूझकर ऐसा सवाल क्यों करते हो?

धन्नूसिंह--ओफ, पेट का दर्द ज्यादा होता जा रहा है ! जरा देर ठहरो तो मैं तुम्हारी बातों का जवाब दूं।

इतना कहकर धन्नूसिंह चुप हो गया और घण्टे भर से ज्यादा देर तक बातों का सिलसिला बन्द रहा। धन्नूसिंह यद्यपि इतनी देर तक चुप रहा मगर बैठा ही रहा और मनोरमा की तरफ से इस तरह होशियार और चौकन्ना रहा जैसे किसी दुश्मन की तरफ से होना वाजिब था। साथ ही इसके धन्नूसिंह की निगाह मैदान की तरफ भी इस ढंग से पड़ती रही जैसे किसी के आने की उम्मीद हो। मनोरमा उसके इस ढंग पर आश्चर्य कर रही थी। यकायक उस मैदान में दो आदमी बड़ी तेजी के साथ दौड़ते हुए उसी तरफ आते दिखाई पड़े जिधर मनोरमा और धन्नूसिंह का डेरा जमा हुआ।

मनोरमा--ये दोनों कौन हैं जो इस तरफ आ रहे हैं ?

धन्नूसिंह--यही बात मैं तुमसे पूछना चाहता था मगर जब तुमने पूछ ही लिया तो कहना पड़ा कि इन दोनों में एक तो भूतनाथ है।

मनोरमा—क्या तुम मुझसे दिल्लगी कर रहे हो ?

धन्नूसिंह--नहीं, कदापि नहीं।

मनोरमा--तो फिर ऐसी बात क्यों कहते हो?

धन्नू सिंह--इसलिए कि मैं वास्तव में धन्नूसिंह नहीं हूँ।

मनोरमा,--(चौंककर) तब तुम कौन हो?

धन्नूसिंह--भूतनाथ का दोस्त और इन्द्रदेव का ऐयार सरयूसिंह।

इतना सुनते ही मनोरमा का रंग बदल गया और उसने बड़ी फुती से अपना दाहिना हाथ सरयू सिंह की तरफ बढ़ाया, मगर सरयूसिंह पहले ही से होशियार और चौकन्ना था, उसने चालाकी से मनोरमा की कलाई पकड़ ली।

मनोरमा की उँगली में उसी तरह के जहरीले नगीने वाली अंगूठी थी, जैसी कि नागर की उँगली में थी और जिसने भूतनाथ को मजबूर कर दिया था तथा जिसका हाल इस उपन्यास के सातवें भाग में हम लिख आये हैं। उसी अंगूठी से मनोरमा ने नकली धन्नूसिंह को मारना चाहा मगर न हो सका, क्योंकि उसने मनोरमा की कलाई पकड़ ली और उसी समय भूतनाथ और सरयूसिंह का शागिर्द भी वहाँ आ पहुंचे। अब मनोरमा ने अपने को काल में मुंह में समझा और वह इतनी डरी कि जो उन ऐयारों ने कहा बेउज