सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
77
 


क्योंकि चुनारगढ कल्याणसिंह--जी हाँ, एक रास्ता है जिसे शायद आप नहीं जानते, मगर पहले मैं दरवाजा बन्द कर लूं।

इतना कहकर कल्याणसिंह दरवाजे की तरफ बढ़ गया और इस कमरे के तीनों दरवाजे बन्द करके शेरअलीखां के पास लौट आया।

शेरअलीखाँ–-दरवाजे क्यों बन्द कर दिए ? यह क्या करते हो?

कल्याणसिंह--जी हाँ, यदि कोई देख लेगा तो मुश्किल होगी।

शेरअलीखाँ-तो इससे मालूम होता है कि तुम राजा वीरेन्द्र सिंह की मर्जी से नहीं छूटे, बल्कि किसी की मदद और चोरी से निकल भागे हो, में तुम्हारे कैद होने का हाल मैं अच्छी तरह जानता हूँ।

कल्याणसिंह--जी हाँ, ऐसी ही बात है।

शेरअलीखाँ--(बैठकर) अच्छा आओ, मेरे पास बैठ जाओ और कहो कि तुम कैसे छूटे और यहाँ क्योंकर आ पहुँचे?

कल्याणसिंह--(बैठकर) खुलासा हाल कहने का तो इस समय मौका नहीं है। परन्तु इतना कहना जरूरी है कि अपनी मदद के लिए मुझे राजा शिवदत्त ने छुड़ाया है और अब मैं सहायता लेने के लिए आपके पास आया हूँ। यदि आप मदद देंगे तो मैं आज ही राजा वीरेन्द्रसिंह से अपने बाप का बदला ले लूंगा।

शेरअलीखाँ--(हँस कर) यह तुम्हारी नादानी है। तुम अभी लड़के हो, ऐसे मामलों पर गौर नहीं कर सकते । राजा वीरेन्द्रसिंह के साथ दुश्मनी करना अपने पैर में आप कुल्हाड़ी मारना है, उनसे लड़कर कोई जीत नहीं सकता और न उनके ऐयारों के सामने किसी की चालाकी ही चल सकती है।

कल्याणसिंह--आपका यह कहना ठीक है, मगर इस समय हम लोगों ने राजा वीरेन्द्रसिंह और उनके ऐयारों को हर तरह से मजबूर कर रखा है।

शेरअलीखाँ--सो कैसे ?

कल्याणसिंह-क्या आप नहीं जानते कि वीरेन्द्रसिंह और उनके ऐयार किशोरी, कामिनी इत्यादि को लेकर तहखाने के अन्दर गये हैं?

शेरअलीखाँ--हाँ, सो तो जानते हैं, मगर इससे क्या?

कल्याणसिंह--जिस समय वीरेन्द्रसिंह वगैरह तहखाने में गये हैं, उसके पहले ही हम लोग अपनी छोटी सेना सहित तहखाने में पहुंच चुके थे और गुप्त राह से यकायक इस किले में पहुंचकर अपना दखल जमाना चाहते थे, मगर ईश्वर ने उन लोगों को तहखाने ही में पहुँचा दिया जिससे हम लोगों को बड़ा सुभीता हुआ। शिवदत्तसिंह ने तो सेना सहित दुश्मनों को घेर लिया है और मैं एक सुरंग की राह से जिसका दूसरा मुहाना (सोने वाली कोठरी की तरफ इशारा करके) इस कोठरी में निकला है, आपके पास मदद के लिए आया हूँ, आशा है कि उधर शिवदत्तसिंह ने दुश्मनों को काबू में कर लिया होगा या मार डाला होगा और इधर मैं आपकी मदद से किले में अपना अधिकार जमा लूंगा।

शेरअलीखाँ--(कुछ सोचकर) मैं खूब जानता हूँ कि इस तहखाने का और यहाँ के कई पेचीले रास्तों का हाल तुमसे ज्यादा जानने वाला अब और कोई नहीं है ।