पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/७९

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दुश्मनी करने योग्य राजा नहीं बल्कि दर्शन करने योग्य हैं ! मैं वादा करता हूँ कि तुम्हारा भी कसूर माफ करा दूंगा और अगर तुमको रोहतासगढ़ की लालच है तो इसे भी तुम राजा वीरेन्द्रसिंह को दावेदारी करके ले सकते हो। वह बड़ा उदार दाता है, यह राज्य दे देना उसके सामने कोई बात नहीं है ।

कल्याणसिंह--अफसोस ! मुझे इन शब्दों के सुनने की कदापि आशा न थी जो इस समय आपके मुंह से निकल रहे हैं। मुझे इस बात का ध्यान भी न था कि आज आपको हिम्मत और मर्दानगी से इस तरह खाली देखूगा। मैं किसी के कहने पर भी विश्वास नहीं कर सकता था कि आपकी रगों में बुजदिली का खून पाऊँगा। मुझे स्वप्न में भी विश्वास नहीं हो सकता कि आपको उसी राजा वीरे द्रसिंह की खुशामद करते पाऊँगा जिसके लड़के ने आपकी लड़की को हर तरह से बेइज्जत किया।

शेरअलीखा--ओफ, तुम्हारी जली-कटी बातें मेरे दिल को हिलाकर मुझे बेई- मान, दगाबाज या विश्वासघाती की पदवी नहीं दिला सकतीं। उस गौहर की याद मेरे दिल की सच्ची तथा इन्साफपसन्द आँखों को फोड़कर नेकों की दुनिया में मुझको अंधा नहीं बना सकती जो बुजुर्गों की इज्जत को मिट्टी में मिला मेरी बदनामी का झण्डा बन- कर जहरीली हवा में उड़ती हुई आसमान की तरफ बढ़ती ही जाती थी, और जिसका गिरफ्तार होकर सजा पाना बल्कि इस दुनिया से उठ जाना मुझे पसन्द है। किसी नाला- यक के लिए लायक के साथ बुराई करना, किसी अधर्मी के लिए धर्मी का खून करना, किसी बेईमान के लिए ईमान का सत्यानाश करना, और किसी अविश्वासी के लिए विश्वासघात करना शेरअलीखां का काम नहीं। मैं समझता था कि तुम्हारे दिल का प्याला सच्ची बहादुरी की शराब से भरा हुआ होगा और तुम दुनिया में नामवरी पैदा कर सकोगे, इसलिए मैं तुम्हारी सिफारिश करने वाला था, मगर अब निश्चय हो गया कि तुम्हारी किस्मत का जहाज शिवदत्त के तूफान में पड़कर एक भारी पहाड़ से टक्कर खाना चाहता है । अब तुम यहाँ से चले जाओ और मुझसे किसी तरह की उम्मीद मत रखो, अगर मैं तुम्हारे बाप का दोस्त न होता और तुम मेरे दोस्त के लड़के न होते'

कल्याणसिंह–-अफसोस, मैं आपकी इस समय यह लम्बी-चौड़ी वक्तृता नहीं सुन सकता क्योंकि समय कम है और काम बहुत करना है, बस आप इतना ही बताइये कि मैं आपसे किसी तरह की आशा रखू या नहीं ?

शेरअलीखां--नहीं, बल्कि इस बात की भी आशा मत रखो कि तुम्हें राजा वीरेन्द्रसिंह के साथ दुश्मनी करते देखकर मैं चुपचाप बैठा रहूँगा।

कल्याणसिंह--(क्रोध में आकर) क्या आप मेरी मदद अगर न करेंगे तो चुप- चाप भी न बैठे रहेंगे?

शेरअलीखाँ--हरगिज नहीं !

कल्याणसिंह--तो आप मेरे साथ दुश्मनी करेंगे?

शेरअलीखाँ--अगर ऐसा करें तो हर्ज ही क्या है ? जिसकी लोग इज्जत करते हों या जिसे दुनिया मोहब्बत की निगाह से देखती है, उसके साथ दुश्मनी करना बेशक बुरा है। मगर ऐसे के साथ बेमुरौबती करने में कुछ भी हर्ज नहीं है जिसके हृदय की