आँख फूट गई हो, जिसे दुनिया में किसी तरह की इज्जत हासिल करने का शौक न हो,
और जिसे लोग हमदर्दी की निगाह से न देखते हों । कल्याणसिंह-(दाँत पीसकर)तो फिर सबसे पहले आप ही का बन्दोबस्त करना पड़ेगा !
इसके पहले कि कल्याणसिंह की बात का शेरअलीखाँ कुछ जवाब दे, बाहर से एक आवाज आई-"हाँ, यदि तेरे किए कुछ हो सके !"
इस आवाज ने दोनों को चौंका दिया, मगर कल्याणसिंह ने ज्यादा देर तक राह देखना मुनासिब न जाना और उस कोठरी की तरफ बढ़कर जोर से ताली बजाई। शेर- अलीखाँ समझ गया कि कल्याणसिंह अपने साथियों को बुला रहा है, क्योंकि वह थोड़ी ही देर पहले कह चुका था कि मेरे साथ सौ सिपाही भी आए हैं जो हुक्म देने के साथ ही इस कोठरी में से मेरी ही तरह निकल सकते हैं।
कल्याण सिंह ताली बजाता हुआ कोठरी की तरफ बढ़ा और उसका मतलब समझ कर शेरअलीखाँ ने शीघ्रता से कमरे का दरवाजा अपने मददगारों को बुलाने की नीयत से खोल दिया तथा उसी समय एक नकाबपोश को हाथ में खंजर लिए कमरे के अन्दर पैर रखते देखा । शेरअलीखाँ ने पूछा, "तुम कौन हो?" नकाबपोश ने जवाब दिया, "तुम्हारा मददगार !"
इससे ज्यादा बातचीत करने का मौका न मिला, क्योंकि कोठरी के अन्दर से कई आदमी हाथों में नंगी तलवारें लिए हुए निकलते दिखाई दिए जिन्हें कल्याणसिंह ने अपनी मदद के लिए बुलाया था।
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अब हम अपने पाठकों को कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह की तरफ ले चलते हैं जिन्हें जमानिया के तिलिस्म में नहर के किनारे पत्थर की चट्टान पर बैठकर राजा गोपाल सिंह से बातचीत करते छोड़ आए हैं।
दोनों कुमार बड़ी देर तक राजा गोपालसिंह से बातचीत करते रहे। राजा साहब ने बाहर का सब हाल दोनों भाइयों से कहा और यह भी कहा कि किशोरी और कामिनी राजी-खुशी के साथ कमलिनी के तालाब वाले मकान में जा पहुँची हैं, अब उनके लिए चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है।
किशोरी और कामिनी का शुभ समाचार सुनकर दोनों भाई बड़े प्रसन्न हुए। राजा गोपालसिंह से इन्द्रजीतसिंह ने कहा, "हम चाहते हैं कि इस तिलिस्म से बाहर होकर पहले अपने माँ-बाप से मिल आवें, क्योंकि उनका दर्शन किए बहुत दिन हो गये और वे भी हमारे लिए बहुत उदास होंगे।"
गोपालसिंह--मगर यह तो हो नहीं सकता।
च० स०-4-5