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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/९३

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इन्द्रजीतसिंह--सबसे पहले बाजे की ताली खोजनी चाहिए, इसके बाद बाजे की आज्ञानुसार काम करना होगा।

दोनों भाई बाजे वाले चबूतरे के पास गये और घूम-घूमकर अच्छी तरह देखने लगे । उसी समय पीछे की तरफ से आवाज आई, "हम भी आ पहुँचे !" दोनों भाइयों ने ताज्जुब के साथ घूमकर देखा तो राजा गोपालसिंह पर निगाह पड़ी।

यद्यपि कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह को राजा गोपालसिंह के साथ पहले ही मोहब्बत हो गई थी, मगर जब से यह मालूम हुआ कि रिश्ते में वे इनके भाई हैं तब से मुहब्बत ज्यादा हो गई थी और इसीलिए इस समय उन्हें देखते ही इन्द्रजीतसिंह दौड़कर उनके गले से लिपट गये तथा उन्होंने भी बड़े प्रेम से दबाया। इसके बाद आनंद- सिंह भी अपने भाई की तरह गले मिले और जब अलग हुए तो गोपालसिंह ने कहा, “मालूम होता है कि महाराज सूर्यकान्त की तस्वीर के नीचे जो कुछ लिखा है उसे आप दोनों भाई पढ़ चुके हैं।"

इन्द्रजीत--जी हाँ, और यह मालूम करके हमें बड़ी खुशी हुई कि आप हमारे भाई हैं ! मगर मैं समझता हूँ कि आप इस बात को पहले ही से जानते थे ।

गोपालसिंह--बेशक इस बात को मैं बहुत दिनों से जानता हूँ क्योंकि इस जगह कई दफे आ चुका हूँ, लेकिन इसके अतिरिक्त तिलिस्म-सम्बन्धी एक ग्रन्थ, जो मेरे पास है, उसमें भी यह बात लिखी हुई है।

आनन्दसिंह--तो इतने दिनों तक आपने हम लोगों से कहा क्यों नहीं ?

गोपालसिंह--उस किताब में जो मेरे पास है ऐसा करने की मनाही थी, मगर अब मैं कोई बात आप लोगों से नहीं छिपा सकता और न आप ही मुझसे छिपा सकते हैं।

इन्द्रजीतसिंह--क्या आप इसी राह से आते-जाते हैं और आज भी इसी राह से हम लोगों को छोड़ कर निकल गये थे?

गोपाल--नहीं-नहीं, मेरे आने-जाने का रास्ता दूसरा ही है । उस कुएँ में आपने कई दरवाजे देखे होंगे, उनमें जो सबसे छोटा दरवाजा है मैं उसी राह से आता-जाता हूँ; यहां दूसरे ही काम के लिए मुझे कभी-कभी आना पड़ता है।

इन्द्रजीतसिंह--यहाँ आने की आपको क्या जरूरत पड़ा करती है?

गोपालसिंह--इधर तो मुद्दत से मैं आफत में फंसा हुआ था, आप ही ने मेरी जान बचाई है, इसलिए दो-दफे से ज्यादा आने की नौबत नहीं आई, हाँ इसके पहले महीने में एक दफे अवश्य आना होता था और इन कमरों की सफाई मुझे ही करनी पड़ती थी। जो किताब मेरे पास है और जिसका जिक्र मैंने अभी किया उसके पढ़ने से इस तिलिस्म का कुछ हाल और जमानिया की गद्दी पर बैठने वालों के लिए जो-जो आज्ञा और नियम बड़े लोग लिख गए हैं, आपको मालूम होगा। उसी नियमानुसार हर महीने की अमा- वस्या को मैं यहाँ आया करता था । आपकी, आनन्दसिंह की और अपनी तस्वीरें मैंने ही नियमानुसार इस कमरे में लगाई हैं और इसी तरह बड़े लोग अपने-अपने समय में अपनी और अपने भाइयों की तस्वीरें गुप्त रीति से तैयार कराके इस कमरे में रखते चले आए हैं । नियमानुसार यह एक आवश्यक बात थी कि जब तक आप लोग स्वयं इस