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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/९४

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कमरे में न आ जायें मैं हरएक बात आप लोगों से छिपाऊँ और इसीलिए मैं इस तिलिस्म के बाहर भी आपको नहीं ले गया जब कि आपने बाहर जाने की इच्छा प्रकट की थी, मगर अब कोई बात छिपाने की आवश्यकता न रही।

इन्द्रजीतसिंह--इस बाजे का हाल भी आपको मालूम होगा?

गोपालसिंह–-केवल इतना ही कि इसमें तिलिस्म के बहुत से भेद भरे हुए हैं, मगर इसकी ताली कहां है सो मैं नहीं जानता।

इन्द्रजीतसिंह--क्या आपके सामने यह बाजा कभी बोला?

गोपालसिंह--इस बाजे की आवाज कई दफे मैंने सुनी है। (जमीन में गड़े एक पत्थर की तरफ इशारा करके) इस पर पैर पड़ने के साथ ही बाजा बजने लगता है, दो तीन गत के बाद कुछ बातें कहता और फिर चुप हो जाता है, अगर इस पत्थर पर पैर न पड़े तो कुछ भी नहीं बोलता।

इन्द्रजीतसिंह--(वह किताब दिखाकर जिस पर बाजे की आवाज लिखी थी) यह आवाज भी आपने सुनी होगी ?

गोपालसिंह--हां, सुन चुका हूं मगर इसके लिए उद्योग करना सबसे पहले आप का काम है।

आनन्दसिंह--महाराज सूर्यकान्त की तस्वीर के नीचे बारीक अक्षरों में जो कुछ लिखा है उसे भी आप पढ़ चुके हैं?

गोपालसिंह--नहीं, क्योंकि अक्षर बहुत बारीक हैं अतः पढ़े नहीं जाते।

इन्द्रजीतसिंह--हम लोग इसे पढ़ चुके हैं।

गोपालसिंह--(ताज्जुब से) सो कैसे ? कुंअर इन्द्रजीतसिंह ने शीशे वाला हाल गोपालसिंह से कहा और जिस तरह स्वयं उन बारीक अक्षरों को पढ़ चुके थे उसी तरह उन्हें भी पढ़वाया।

गोपालसिंह--समय ने इस काम को आप लोगों के लिए ही रख छोड़ा था।

इन्द्रजीतसिंह--इसका मतलब आप समझ गये?

गोपालसिंह--जी हाँ, समझ गया।

इन्द्रजीतसिंह--अब आप हम लोगों को बड़ाई के शब्दों से सम्बोधन न किया कीजिए क्योंकि आप बड़े हैं और हम लोग छोटे हैं, इस बात का पता लग चुका है।

गोपालसिंह--(हँसकर) ठीक है, अब ऐसा ही होगा, अच्छा तो बाजेवाले चबू- तरे में से ताली निकालनी चाहिए। इन्द्रजीतसिंह जी हां, हम लोग इसी फिक्र में थे कि आप आ पहुँचे, लेकिन मुझे तो और भी बहुत सी बातें आपसे पूछनी हैं।

गोपालसिंह--खैर, पूछ लेना, पहले ताली के काम से छुट्टी पा लो।

आनन्दसिंह--मैंने इस कमरे में एक औरत को आते हुए देखा था मगर वह मुझ पर निगाह पड़ने के साथ ही पिछले पैर लौट गई और दूसरी कोठरी में जाकर गायब हो गई। इस बात का पता न लगा कि वह कौन थी या यहाँ क्योंकर आई ।