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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१००

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इन्द्रजीतसिंह––तो क्या तुम उस बाग में कभी नहीं जाती?

इन्द्रानी––जी नहीं, क्योंकि एक तो दुश्मन के खयाल से मेरा जाना वहाँ नहीं होता, दूसरे उसने रास्ता भी बन्द कर दिया है। इसी तरह मैं उसके पक्षपातियों को अपने बाग में नहीं आने देती।

इन्द्रजीतसिंह––तो हमारी और उनकी मुलाकात क्योंकर हो सकती है?

इन्द्रानी––यदि आप उन सभी से मिलना चाहें तो तीन-चार दिन और सब्र करें क्योंकि अब ईश्वर की कृपा से ऐसा प्रबन्ध हो गया है कि तीन-चार दिन के अन्दर ही वह बाग मेरे कब्जे में आ जाय और उसका मालिक मेरा कैदी बने। मेरे दारोगा ने तो कमलिनी को उस बाग में जाने से मना किया था। मगर अफसोस कि उसने दारोगा की बात न मानी और धोखे में पड़ कर अपने को एक ऐसी जगह जा फँसाया, जहाँ से हम लोगों का सम्बन्ध कुछ भी नहीं।

इन्द्रजीतसिंह––तो क्या तुम लोग राजा गोपालसिंह के अधीन नहीं होते?

इन्द्रानी––हम लोग जरूर राजा गोपालसिंह के अधीन हैं, और मैं हूँ कि आप यहाँ के तिलिस्म को तोड़ने के लिए आए हैं, अस्तु, इस बात को भी जानते होंगे कि यहाँ के बहुत से ऐसे हिस्से हैं, जिन्हें आप नहीं तोड़ सकेंगे।

इन्द्रजीतसिंह––हाँ, जानते हैं।

इन्द्रानी––उन्हीं हिस्सों में से जो टूटने वाले नहीं हैं, कई दर्जे ऐसे हैं जो केवल सैर-तमाशे के लिए बनाये गए हैं और वहां जमानिया का राजा प्रायः अपने मेहमानों को भेज कर सैर-तमाशा दिखाया करता है, अस्तु इसलिए कि वह जगह हमेशा अच्छी हालत में बनी रहे हम लोगों के कब्जे में दे दी गई है और नाम मात्र के लिए हम लोग तिलिस्म की रानी कहलाती हैं, मगर हाँ इतना तो जरूर है कि हम लोगों को सोना-चाँदी और जवाहिरात की (यहाँ की बदौलत) कमी नहीं है।

इन्द्रजीतसिंह––जिन दिनों राजा गोपाल सिंह को मायारानी ने कैद कर लिया था उन दिनों यहाँ की क्या अवस्था थी? मायारानी भी कभी यहाँ आती थी या नहीं?

इन्द्रानी––जी नहीं, मायारानी को इन सब बातों और जगहों की कुछ खबर ही न थी। इसलिए वह अपने समय में यहाँ कभी नहीं आई और तब तक हम लोग स्वतन्त्र बने रहे। अब इधर जब से आपने राजा गोपालसिंह को कैद से छुड़ा कर हम लोगों को पुनः जीवनदान दिया है, तब से केवल तीन दफे राजा गोपालसिंह यहाँ आए हैं और चौथी दफे परसों मेरी शादी में यहाँ आवेंगे!

इन्द्रजीतसिंह––(चौंक कर) क्या परसों तुम्हारी शादी होने वाली है?

इन्द्रानी––(कुछ शरमा कर) जी हाँ, मेरी और (आनन्दी की तरफ इशारा करके) मेरी इस छोटी बहिन की भी।

इन्द्रजीतसिंह––किसके साथ?

इन्द्रानी––सो तो मुझे मालूम नहीं।

इन्द्रजीतसिंह––शादी करने वाले कौन हैं? तुम्हारे माँ-बाप होंगे?

इन्द्रानी––जी, मेरे माँ-बाप नहीं हैं केवल गुरुजी महाराज हैं, जिनकी आज्ञा

च॰ स॰-5-6