पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१०५

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किसी के पुकारने की आवाज आई।

जिस जगह ये सिपाही लोग थे, उससे थोड़ी ही दूर पर एक बुर्ज था। इस समय उसी बुर्ज पर चढ़े हुए राजा गोपालसिंह को उन सिपाहियों ने देखा और मालूम किया कि वह आवाज उन्हीं ने दी थी।

गोपालसिंह की कैफियत देखकर सिपाहियों का कलेजा पहले ही दहल चुका था, अतः अब इस बात का हौसला नहीं कर सकते थे कि उनका मुकाबला करें। उन्हें देखने के साथ ही उस फौज का अफसर हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और बोला, "आज्ञा!"

गोपालासिंह ने कहा, "हम खूब जानते हैं कि तुम लोग बेकसूर हो और जो कुछ कसूर है, वह तुम्हारे मालिकों का है, सो तुमने देख ही लिया कि वे अपनी सजा को पहुँच गये, अब वे जीते नहीं हैं जो तुमसे आकर मिलेंगे, अतः अब तुम लोगों को हुक्म दिया जाता है कि तुम लोग अपनी-अपनी जान बचाकर यहाँ से निकल जाओ। यदि तुम्हारी इच्छा हो तो तुम्हारे जाने के लिए दरवाजा खोल दिया जाय और तुम लोग बाग से बाहर होकर जहाँ इच्छा हो चले जाओ। यदि तुम चाहोगे और नेकचलनी का वादा करोगे तो हमारी फौज में भी तुम को जगह मिल जायगी।"

फौजी अफसर––(हाथ जोड़े हुए) आप स्वयं राजा हैं और जानते हैं कि सिपाही लोग तनख्वाह के वास्ते लड़ते हैं। जो राज्य या जमीन के वास्ते लड़े और सिपाहियों को तनख्वाह दे, कसूर उसी का समझा जाता है। हमारे मालिक नादान थे, आपके प्रताप का खयाल न करके मायारानी की बातों में आकर नष्ट हो गये, अब हम लोग आपके अधीन हैं और चाहते हैं कि हम लोगों को इस कैद से छुटकारा ही नहीं बल्कि आपके सरकार में नौकरी भी मिले। इस समय हम लोग अपने को आप ही का ताबेदार समझते हैं।

गोपालसिंह––अच्छा, तो जैसा चाहते हो, वैसा ही होगा। इस समय से तुम्हें अपना नौकर समझ के हुक्म दिया जाता है कि मायारानी जो तुम लोगों के बीच में चली आई है, जूतियाँ लगाकर अलग कर दी जाय और तुम लोग (हाथ का इशारा करके) उस तरफ की दीवार के पास चले जाओ। वहाँ तुम्हें एक छोटा सा दरवाजा खुला हुआ दिखाई देगा, बस उसी राह से तुम लोग बाहर चले जाना और किसी ठिकाने मैदान में डेरा जमाना। हमारा राजदीवान स्वयं तुम्हारे पास पहुँचकर सब इन्तजाम कर देगा। मगर खबरदार, इस बात का खूब खयाल रखना कि मायारानी तुम लोगों के साथ बाहर न जाने पावे और तुम लोगों में से एक आदमी भी उसका साथ न दे।

फौजी अफसर––जो हुक्म।

मायारानी बेइज्जत हो ही चुकी थी, मगर फिर भी दूर खड़ी यह सब कार्रवाई देख और बातें सुन रही थी। उसे इन सिपाहियों की नमकहरामी पर बड़ा क्रोध आया और वह वहाँ से भागकर पश्चिम की तरफ वाले दालान में चली गई, तथा एक कोठरी के अन्दर घुसकर गायब हो गयी। शायद इस कोठरी में कोई तहखाना या रास्ता था, जिसका हाल उसे मालूम था। उसी राह से होकर वह मकान की दूसरी मंजिल पर चली गई और उसी जगह से छिपकर तिलिस्मी तमंचे की गोली उन फौजी सिपाहियों पर चलाने लगी जो राजा गोपालसिंह की आज्ञानुसार दरवाजे की तरफ जा रहे थे। इन