चाहते हो तो मैं तुम्हें कहता हूँ कि मायारानी का खयाल न करके उसे इसी जगह छोड़ दो और तुम लोग उस सफेद संगमरमर के चबूतरे पर भागकर चले जाओ। खबरदार, दूसरी जगह मत खड़े होना और मेरे नीचे आने के पहले ही यहाँ से हटकर उस चबूतरे पर चले जाना, नहीं तो पछताओगे!"
इतना कहकर नये गोपालसिंह ने मोमबत्ती नीचे फेंक दी और पीछे की तरफ हटकर उन लोगों की नजरों से गायब हो गये।
अब भीमसेन और माधवी वगैरह को निश्चय हो गया कि मायारानी के किए कुछ न होगा और इसका साथ करके हम लोगों ने व्यर्थ ही में अपने को आफत में ला फँसाया। इस तिलिस्मी बाग तथा राजा गोपालसिंह की माया का पता नहीं लगता, अतः मायारानी का साथ देना और गोपालसिंह की बात न मानना निःसन्देह अपना गला अपने हाथ से काटना है। इतना सोचते-सोचते ही वे लोग गोपाल सिंह के कहे मुताबिक उस संगमरमर के चबूतरे पर चले गये जो उनसे थोड़ी ही दूर पर उनके पीछे की तरफ पड़ता था।
होना तो ऐसा ही चाहिए था कि गोपालसिंह की बातों से डरकर मायारानी भी उन लोगों के साथ-ही-साथ उसी संगमरमर वाले चबूतरे पर चली जाती, मगर न मालूम क्या सोचकर उसने ऐसा न किया और वहाँ से भागकर उन फौजी सिपाहियों की भीड़ में जा छिपी जो इस बाग में खड़े हुए इनकी बातें सुन नहीं सकते थे, मगर ताज्जुब के साथ सब-कुछ देख जरूर रहे थे।
वह संगमरमर का चबूतरा, जिस पर भीमसेन वगैरह चले गये थे, उनके जाने के थोड़ी ही देर बाद इस तेजी के साथ जमीन के अन्दर धंस गया कि उन लोगों को कूदकर भागने की भी मोहलत न मिली। कुछ देर बाद उन सभी को न मालूम कहाँ उलटकर वह चबूतरा फिर ऊपर चला आया और ज्यों का त्यों अपने स्थान पर जम गया।
इस समय केवल सुबह की सफेदी ही ने चारों तरफ अपना दखल नहीं जमा लिया था, बल्कि आसमान पर पूरव की तरफ सूरज की लालिमा भी कुछ दूर तक फैल चुकी थी, इसलिए उस चबूतरे पर जाने वाले भीमसेन और माधवी वगैरह का जो हाल हुआ, वह माधवी के फौजी सिपाहियों ने भी बखूबी देख लिया। अपने मालिक और उनके साथियों की यह दशा देख फौजी सिपाही घबरा गये और चाहने लगे कि यदि कहीं रास्ता मिल जाय तो हम लोग भी यहाँ से भागकर अपनी जान बचावें। उन्हें अपने झुँड में मायारानी का आ जाना बहुत ही बुरा मालूम हुआ और उन्होंने बड़ी बेमुरौवती के साथ मायारानी से कहा, "तुम्हारी ही बदौलत हम लोगों की यह दशा हुई है और हमारे मालिकों पर भी आफत आई, अत: अब तुम हमारी मण्डली में से चली जाओ, नहीं तो हम लोग जूते से तुम्हारे सिर की खबर लेंगे, तुम्हारे जाने के बाद हम लोगों पर जो कुछ बीतेगी, उसे सह लेंगे।"
अफसोस, अपनी करतूतों के कारण आज मायारानी इस दशा को पहुँच गई कि अपने सिपाहियों की झिड़की सहे और जूतियाँ खाय। सिपाहियों की बात जब मायारानी ने न मानी तो कई सिपाहियों ने जूतियों से उसकी खबर ली, और उसी समय ऊपर से