आदमी––अगर ऐसा समझेंगे तो समझें, तुम सोच क्या रहे हो! क्या मेरा हुक्म न मानोगे?
भूतनाथ––मेरी क्या मजाल जो आपका हुक्म न मानूं।
इतने ही में उसी तरह का स्याह लबादा ओढ़े और भी एक आदमी वहाँ आ पहुँचा। भूतनाथ समझ गया कि वह आदमी इसी का साथी है और कल भी यहाँ आया था। इस नये आये हुए आदमी ने पहले आदमी से खास बोली (भाषा) में कुछ बातचीत की जिसे भूतनाथ कुछ भी न समझ सका, इसके बाद उसने परदा हटा के अपनी सूरत भूतनाथ को दिखा दी।
अव भूतनाथ के ताज्जुब का कोई ठिकाना न रहा और वह एक दम घबरा के बोला, "नहीं-नहीं, मैं जागता नहीं हूँ बल्कि जो कुछ देख रहा हूँ, सब स्वप्न है!"
दूसरा आदमी––भूतनाथ, तुम पागल हो गए हो!
भूतनाथ––बेशक यही बात है, या तो मैं स्वप्न देख रहा हूँ या पागल हो गया हूँ।
पहला आदमी––न तो तुम स्वप्न देख रहे हो और न पागल ही हो गए हो, जो कुछ देख-सुन रहे हो सब ठीक है। अच्छा, अब तुम हम लोगों के साथ आओ, किसी दूसरी जगह अँधेरे में खड़े होकर बातचीत करेंगे, तो हम यहाँ केवल इसलिए खड़े हो गये थे कि तुम्हें अपनी सूरत दिखा दें।
इतना कहकर वे दोनों आदमी भूतनाथ का हाथ पकड़े हुए दूसरे दालान में चले गए जहाँ बिल्कुल अन्धकार था और वहाँ बातचीत करने लगे। इस जगह उन तीनों में जो कुछ बातें हुईं वह ऐयारी भाषा में हुईं, इसलिए लिख न सके, मगर आगे चलकर इन बातों का जो कुछ नतीजा निकलेगा पाठकों को मालूम हो जायगा। हाँ इतना कह देना जरूरी है कि डेढ़ घण्टे तक उन तीनों में खूब बातें होती रहीं, इस बीच में दो दफे भूतनाथ के बड़े जोर से हँसने की आवाज आई, ताज्जुब नहीं कि वह आवाज बलभद्रसिंह के कानों तक भी पहुँची हो। इसके बाद भूतनाथ वहाँ से रवाना होकर बलभद्रसिंह के पास आया, देखा कि अभी तक वह बैठे हुए हैं और भूतनाथ का इन्तजार कर रहे हैं।
भूतनाथ को देखते ही बलभद्रसिंह बोले, "आओ-आओ भूतनाथ, मेरे पास बैठ जाओ और बताओ कि क्या हुआ! वह आदमी कौन था जो तुम्हें ले गया था?"
"मैं सब विचित्र हाल आपसे कहता हूँ।" यह कहता हुआ भूतनाथ बलभद्रसिंह के पास बैठ गया, मगर इस तरह पर सटकर बैठा कि उसकी कमर में लगा तिलिस्मी खंजर बलभद्रसिंह के बदन से छू गया और वह उसी समय काँपकर बेहोश हो गये।
बलभद्रसिंह के बेहोश हो जाने के बाद भूतनाथ ने उनकी गठरी बाँधी और नीचे उतारकर दोनों विचित्र आदमियों के पास ले गया। उन दोनों ने उसे तिलिस्मी चबूतरे के पास पहुँचा देने के लिए कहा और भूतनाथ उसे तिलिस्मी चबूतरे के पास ले गया, तब वे दोनों आदमी बलभद्रसिंह को लेकर चबूतरे के अन्दर चले गये, चबूतरे का पल्ला बन्द हो गया और भूतनाथ कुछ सोचता-विचारता अपनी चारपाई पर आकर लेट रहा।