पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१११

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सवेरा हो जाने पर जब भूतनाथ और बलभद्रसिंह से मिलने के लिए पन्नालाल तिलिस्मी खँडहर के अन्दर नम्बर दो वाले कमरे में गये तो भूतनाथ को चारपाई पर सोते पाया और बलभद्र सिंह को वहाँ न देखा। पन्नालाल ने भूतनाथ को जगाकर पूछा, "आज तुम इस समय तक खुर्राटे ले रहे हो, यह क्या मामला है!"

भूतनाथ––बलभद्र सिंह जी ने गप-शप में तीन पहर रात बैठे ही बैठे बिता दी इसलिए सोने में बहुत कम आया और अभी तक आँख नहीं खुली, आइये बैठिये।

पन्नालाल––बलभद्रसिंह जी कहाँ हैं?

भूतनाथ––मुझे क्या खबर, इसी जगह कहीं होंगे, मुझे तो अभी आपने सोते से जगाया है।

पन्नालाल––मगर मैंने तो उन्हें कहीं भी नहीं देखा!

भूतनाथ––किसी पहरे वाले से पूछिये, शायद हवा खाने के लिए कहीं बाहर चले गये हों।

बलभद्रसिंह को वहाँ न पाकर पन्नालाल को बड़ा ही ताज्जुब हुआ और भूतनाथ भी घबराया-सा दिखाई देने लगा। पहले तो पन्नालाल और भूतनाथ दोनों ही ने उन्हें खँडहर वाले मकान के अन्दर खोजा मगर जब कुछ पता न लगा तब फाटक पर आकर पहरे वालों से पूछा। पहरे वालों ने भी उन्हें देखने से इनकार करके कहा कि "हम लोगों ने बलभद्र सिंह जी को फाटक के वाहर निकलते नहीं देखा। अतः हम लोग उनके बारे में कुछ नहीं कह सकते।"

बलभद्रसिंह कहाँ चले गये? आसमान पर उड़ गये, दीवार में घुस गये, या जमीन के अन्दर समा गये, क्या हुए? इस बात ने सभी को तरद्दुद में डाल दिया। धीरे-धीरे जीतसिंह को भी इस बात की खबर हुई। जीतसिंह स्वयं उस खँडहर वाले मकान में गये और तमाम कमरों, कोठरियों ओर तहखानों को देख डाला मगर बलभद्रसिंह का पता न लगा। भूतनाथ से भी तरह-तरह के सवाल किये गये, मगर इससे भी कुछ फायदा न हुआ।

संध्या के समय राजा वीरेन्द्रसिंह की सवारी उस तिलिस्मी खँडहर के पास आ पहुँची और राजा वीरेन्द्र सिंह तथा तेजसिंह वगैरह सब कोई उसी खँडहर वाले मकान में उतरे। पहर भर जाते तक तो इन्तजामी होहल्ला मचता रहा, इसके बाद लोगों को राजा साहब से मुलाकात करने की नौबत पहुँची, मगर राजा साहब ने वहाँ पहुँचने के साथ ही भूतनाथ और बलभद्रसिंह का हाल जीतसिंह से पूछा था और बलभद्रसिंह के बारे में जो कुछ हुआ था, उसे उन्होंने राजा साहब से कह सुनाया था। पहर रात जाने के बाद जब भूतनाथ आज्ञानुसार दरबार में हाजिर हुआ तब राजा वीरेन्द्रसिंह ने उससे पूछा, "कहो भूतनाथ, अच्छे तो हो?"

भूतनाथ––(हाथ जोड़कर) महाराज के प्रताप से प्रसन्न हूँ।