पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
123
 

सभी की इच्छानुसार दोनों भाई उठकर उसी कमरे में चले गये जो एक तौर पर उनके बैठने या रहने का स्थान हो चुका था। इस समय रात घण्टे भर से कुछ कम बाकी थी।

दोनों कुमारों को उस कमरे में बैठे पहर भर से ज्यादा बीत गया मगर किसी ने आकर खबर न ली कि वे दोनों क्या कर रहे हैं और उन्हें किसी चीज की जरूरत है या नहीं। आखिर राह देखते-देखते लाचार होकर दोनों कुमार कमरे के बाहर निकले और इस समय बाग में चारों तरफ सन्नाटा देखकर उन्हें बड़ा ही ताज्जुब हुआ। इस समय न तो उस बाग में कोई आदमी था और न ब्याह-शादी के सामान में से ही कुछ दिखाई देता था, यहाँ तक कि उस संगमर्मर के चबूतरे पर भी (जिस पर ब्याह का मँड़वा था) हर तरह से सफाई थी और यह नहीं मालूम होता था कि आज रात को इस पर कुछ हुआ था।

बेशक यह बात ताज्जुब की थी बल्कि इससे भी बढ़कर यह बात ताज्जुब की थी कि दिन भर बीत जाने पर भी किसी ने उनकी खबर न ली। जरूरी कामों से छुट्टी पाकर दोनों कुमारों ने बावली में स्नान किया और दो-चार फल, जो कुछ उस बागीचे में मिल सके, खाकर उसी पर सन्तोष किया।

दोनों भाइयों ने तरह-तरह के सोच-विचार में ज्यों-त्यों करके दिन बिता दिया मगर संध्या होते-होते जो कुछ वहाँ पर उन्होंने देखा उसके बर्दाश्त करने की ताकत उन दोनों के कोमल कलेजों में न थी। संध्या होने में थोड़ी ही देर थी जब उन दोनों ने उस बुड्ढे दारोगा को तेजी के साथ अपनी तरफ आते हुए देखा। उसकी सूरत पर हवाई उड़ रही थी और वह घबड़ाया हुआ सा मालूम पड़ रहा था। आने के साथ ही उसने कुँअर इन्द्रजीतसिंह की तरफ देख के कहा, "बड़ा अन्धेर हो गया! आज का दिन हम लोगों के लिए प्रलय का दिन था इसलिए आपकी सेवा में उपस्थित न हो सका!"

इन्द्रजीतसिंह––(घबड़ाहट और ताज्जुब के साथ) क्या हुआ?

दारोगा––आश्चर्य है कि इसी बाग में दो-दो खून हो गये और आपको कुछ भी मालूम न हुआ!

इन्द्रजीत––(चौंक कर) कहाँ और कौन मारा गया?

दारोगा––(हाथ का इशारा करके) उस पेड़ के नीचे चलकर देखने से आपको मालूम होगा कि एक दुष्ट ने इन्द्रानी और आनन्दी को इस दुनिया से उठा दिया, लेकिन बड़ी कारीगरी से मैंने खूनी को गिरफ्तार कर लिया है।

यह एक ऐसी बात थी जिसने इन्द्रजीत और आनन्दसिंह के होश उड़ा दिए। दोनों घबड़ाए हुए उस बुड्ढे दारोगा के साथ पूरब की तरफ चले गये और एक पेड़ के नीचे इन्द्रानी और आनन्दी की लाश देखी। उनके बदन में कपड़े और गहने सब वही थे जो आज रात को ब्याह के समय कुमार ने देखे थे, और पास ही एक पेड़ के साथ बँधा हुआ नानक भी उसी जगह मौजूद था। उन दोनों को देखने के साथ ही इन्द्रजीतसिंह ने नानक से पूछा, "क्या इन दोनों को तूने मारा है?"

इसके जवाब में नानक ने कहा, "हाँ, इन दोनों को मैंने मारा है और इनाम पाने का काम किया है, ये दोनों बड़ी ही शैतान थीं!"