पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१२२

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जवाब लेने के लिए आया तो दोनों कुमार उससे खुशी-खुशी मिले और बोले कि हम दोनों भाइयों को इन्द्रानी और आनन्दी के साथ व्याह करना स्वीकार है।


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कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह ने इन्द्रानी और आनन्दी से ब्याह करना स्वीकार कर लिया और इस सबब से उस छोटे से बाग में ब्याह की तैयारी दिखाई देने लगी। इन दोनों कुमारों के ब्याह का बयान धूमधाम से लिखने के लिए हमारे पास कोई मसाला नहीं है। इस शादी में न तो बारात है, न बाराती, न गाना है न बजाना, न धूम है न धड़क्का, न महफिल है न ज्याफत, अगर कुछ बयान किया भी जाय तो किसका! हाँ इसमें कोई शक नहीं कि ब्याह कराने वाले पण्डित अविद्वान और लालची न थे, तथा शास्त्र की रीति से ब्याह कराने में किसी तरह की त्रुटि भी दिखाई नहीं देती थी। बावली के ऊपर संगमर्म वाला चबूतरा ब्याह का मँड़वा बनाया गया था और उसी पर दोनों शादियाँ एक साथ ही हुई थीं, अतः ये बातें भी इस योग्य नहीं कि जिनके बयान में तूल दिया जाय और दिलचस्प मालूम हों, हाँ इस शादी के सम्बन्ध में कुछ बातें ऐसी जरूर हुईं जो ताज्जुब और अफसोस की थीं और उनका बयान इस जगह कर देना हम आवश्यक समझते हैं।

इन्द्रानी के कहे मुताबिक कुँअर इन्द्रजीतसिंह को आशा थी कि राजा गोपालसिंह से मुलाकात होगी मगर ऐसा न हुआ। ब्याह के समय पाँच-सात औरतों के (जिन्हें कुमार देख चुके थे मगर पहचानते न थे) अतिरिक्त केवल चार मर्द वहाँ मौजूद थे। एक वही बुड्ढा दारोगा; दूसरे ब्याह कराने वाले पण्डितजी, तीसरा एक और आदमी जो पूजा इत्यादि की सामग्री इधर-से-उधर समयानुकूल रखता था और चौथा वह आदमी था जिसने कन्यादान (दोनों) किया था। चाहे वह इन्द्रानी और आनन्दी का बाप हो या गुरु हो या चाचा इत्यादि जो कोई भी हो, मगर उसकी सूरत देख कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह को बड़ा ही आश्चर्य हुआ। यद्यपि उसकी उम्र पचास से ज्यादा न थी मगर वह साठ वर्ष से भी ज्यादे उम्र का बुड्ढा मालूम होता था। उसके खूबसूरत चेहरे पर जर्दी छाई थी, बदन में हड्डी-ही-हड्डी दिखाई देती थी, और मालूम होता था कि इसकी उम्र का सबसे बड़ा हिस्सा रंज, गम और मुसीबत ही में बीता है। इसमें कोई शक नहीं कि यह किसी जमाने में खूबसूरत, दिलेर और बहादुर रहा होगा, मगर अब तो अपनी सूरत-शक्ल से देखने वालों के दिल में दुःख ही पैदा करता था। दोनों कुमार ताज्जुब की निगाहों से उसे देखते रहे और उसका असल हाल जानने की उत्कण्ठा उन्हें बेचैन कर रही थी।

कन्यादान हो जाने के बाद दोनों कुमारों ने अपनी-अपनी उँगली से अँगूठी उतार कर अपनी-अपनी स्त्री को (निशानी या तोहफे के तौर पर) दी और इसके बाद