(कुमार से) आज हम लोगों के लिए बड़ी खुशी का दिन है, ईश्वर ने बड़े भागों से यह दिन दिखाया है, अतएव अगर हम लोग हँसी-दिल्लगी में कुछ विशेष कह जायें तो रंज न मानिएगा।
इन्द्रजीतसिंह––ताज्जुब है कि आप रंज होने का जिक्र करती हैं! क्या आप इस बात को नहीं जानतीं कि इन्हीं बातों के लिए हम लोग कब से तरस रहे हैं! (कमलिनी की तरफ देख के और मुस्करा के) मगर आशा है कि अब तरसना न पड़ेगा।
कमलिनी––यह तो (किशोरी की तरफ बता के) इन्हें कहिए, तरसने की बात का जवाब तो यही दे सकेंगी।
किशोरी––ठीक है, क्योंकि आदमी जब किसी के हाथ बिक जाता है तो आजादी की हवा खाने के लिए उसे तरसना ही पड़ता है।
इन्द्रजीतसिंह––(बात का ढंग दूसरी तरफ बदलने की नीयत से कमलिनी की तरफ देखकर) हाँ, यह तो बताओ कि नानक से और तुम लोगों से मुलाकात हुई थी या नहीं?
कमलिनी––जी नहीं, उस पर तो आपको बड़ा रंज होगा!
इन्द्रजीतसिंह––हाँ, इसलिए कि उसने अपनी चाल-चलन को बहुत बिगाड़ रखा है। (कमला से) तुमने यह तो सुना ही होगा कि नानक भूतनाथ का लड़का है और भूतनाथ तुम्हारा पिता है!
कमला––जी हाँ, मैं सुन चुकी हूँ, मगर वे (लम्बी साँस लेकर) आजकल अपनी भूलों के सबब आप लोगों के मुजरिम बन रहे हैं!
इन्द्रजीतसिंह––चिन्ता मत करो, पिछले जमाने में अगर भूतनाथ से किसी तरह का कसूर हो गया तो क्या हुआ, आजकल वह हम लोगों का काम बड़ी खूबी और नेक-नीयती के साथ कर रहा है और तुम विश्वास रखो कि उसका सब कसूर माफ किया जायेगा।
कमला––यदि आपकी कृपा हो तो सब अच्छा ही होगा। (कमलिनी की तरफ इशारा करके) इन्होंने भी मुझे ऐसी ही आशा दिलाई है।
लक्ष्मीदेवी––इनका तो वह ऐयार ही ठहरा, इन्हीं के दिए हुए तिलिस्मी खंजर की बदौलत उसने बड़े-बड़े काम किए और कर रहा है। हाँ, खूब याद आया, (इन्द्रजीतसिंह से) मैं आपसे एक बात पूछूँगी।
इन्द्रजीतसिंह––पूछिये।
लक्ष्मीदेवी––तालाब वाले तिलिस्मी मकान से थोड़ी दूर पर जंगल में एक खूबसूरत नहर है और वहीं पर किसी योगिराज की समाधि है...।
इन्द्रजीतसिंह––हाँ-हाँ, मैं उस स्थान का हाल जानता हूँ। यद्यपि मैं वहाँ कभी गया नहीं, मगर 'रिक्तगन्थ' की बदौलत मुझे वहाँ का हाल बखूबी मालूम हो गया है, (कमलिनी की तरफ देखकर) इन्हें भी तो मालूम ही होगा क्योंकि वह 'रिक्तगन्थ' बहुत दिनों तक इनके पास था।
कमलिनी––जी हाँ, उसी रिक्तगन्थ की बदौलत मुझे उसका हाल मालूम हुआ