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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१३४

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आपस में लड़-मरते थे पर एक की दूसरे को खबर नहीं होती थी। देखो, रोहतासगढ़ में मायारानी की चमेली ने तो माधवी पर वार किया और माधवी को मरते दम तक इस बात का पता न लगा। अगर पता लग जाता तो क्या आज दिन माधवी मायारानी के साथ मिलकर यहाँ के तिलिस्मी बाग में आने की हिम्मत कभी करती?

कमलिनी––कदापि नहीं! (हँसकर) मगर आश्चर्य तो यह है कि जिस माधवी और मायारानी ने इतना ऊधम मचा रखा था, उन्हीं दोनों से आपने शादी कर ली। अफसोस तो यही है कि उनके पापों ने उन्हें बचने न दिया और हम लोगों को मुबारकबाद देने का मौका न मिला!

इन्द्रजीतसिंह––(शरमाकर) तुम तो...!

लक्ष्मीदेवी––(कुमार की बात काटकर कमलिनी से) बहिन, तुम भी कैसी शोख हो! कई दफे तुमसे कह चुकी हूँ कि इस बात का जिक्र न करना, मगर आखिर तुमने न मानी! खैर, अगर कुमार ने शादी की तो फिर तुम्हें क्या? तुम ताना मारने वाली कौन? और फिर भूल-चूक की बात ही क्या है, इन्होंने कुछ जान-बूझके तो शादी की ही नहीं, धोखे में पड़ गय। खबरदार, अब इस बात का जिक्र कोई करने न पाये। (कुमार से) हाँ, तो बताइए कि हम लोगों का हाल आपको कुछ मालूम हुआ या नहीं?

इन्द्रजीतसिंह––मैं तो बहुत दिनों से तिलिस्म के अन्दर हूँ, मगर बाहर का हाल, जिसमें आप लोगों का हाल भी मिला हुआ था, भाईसाहब (गोपालसिंह) बराबर सुना दिया करते थे और जो कुछ नहीं मालूम है वह अब मालूम हो जायेगा, क्योंकि ईश्वर की कृपा से आप लोगों का बहुत अच्छा समागम हुआ है, एक-दूसरे से आप-बीती कहने-सुनने का मौका आज से बढ़कर फिर न मिलेगा। साथ ही इसके मैं यह भी कहूँगा कि आप (कमलिनी की तरफ इशारा करके) इन्हें बात-बात में डाँटने या दबाने की तकलीफ न करें, ये जितना और जो कुछ मुझे कहें कहने दीजिये क्योंकि मैं इनके हाथ बिका हूँ, इन्होंने हम लोगों के साथ जो कुछ सलूक किया है, वह किसी से छिपा नहीं है और न उसका बोझ हम लोगों के सिर से कभी उतर सकता है...

कमलिनी––बस-बस, ज्यादा तारीफों की भरमार न कीजिए। अगर आप...(सरयू की तरफ देख के) चाची, क्षमा कीजिए, और जरा इस कमरे में जाकर (दोनों कुमारों और भैरोंसिंह की तरफ बताकर) इन लोगों के लिए खाने का इन्तजाम कीजिए।

सरयू कमलिनी का मतलब समझ गई कि उसके सामने हँसी-दिल्लगी की बातें करते इन लोगों को शर्म मालूम होती है और उचित भी यही है कि अतः वह उठकर दूसरे कमरे में चली गई और तब कमलिनी ने पुनः इन्द्रजीतसिंह से कहा, "हाँ, अगर आप मेरे हाथ बिके हुए हैं तो कोई चिन्ता नहीं, मैं आपको बड़ी खातिर के साथ अपने पास रखूगी।"

किशोरी––(मुस्कराती हुई) इनकी ताबीज बना के गले में पहन लेना।

कमलिनी––जी नहीं, गले तो ये तुम्हारे मढ़े जायेंगे, मैं तो इन्हें हाथों पर लिए फिरूँगी।

लक्ष्मीदेवी––बल्कि चुटकियों पर, क्योंकि तुम ऐसी ही शोख और मसखरी हो!