पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१४०

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निकलकर मुझसे मुलाकात करने वाले या बलभद्रसिंह को ले जाने वाले आदमियों का हाल कहीं राजा साहब या उनके ऐयारों को मालूम न हो जाये और मैं एक नई आफत में न फँस जाऊँ, क्योंकि उनका पुनः उस चबूतरे के नीचे से निकलकर मुझसे मिलने आना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।'

रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है। राजा वीरेन्द्र सिंह अपने कमरे के बाहर बरामदे में फर्श पर बैठे अपने मित्र तेजसिंह से धीरे-धीरे कुछ बातें कर रहे हैं। कमरे के अन्दर इस समय एक हल्की रोशनी हो रही है सही, मगर कमरे का दरवाजा घूमा रहने के सबब यह रोशनी वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह तक नहीं पहुँच रही थी जिससे ये दोनों एक प्रकार से अंधकार में बैठे हुए थे और दूर से इन दोनों को कोई देख नहीं सकता था। नीचे बाग में लोहे के बड़े-बड़े खम्भों पर लालटेनें जल रही थीं, फिर भी बाग की घनी सब्जी और लताओं का सहारा उससे छिपकर घूमने वालों के लिए कम न था। उस दालान में कंदील जल रही थी जिसमें तिलिस्मी चबूतरा था और इस समय राजा वीरेन्द्रसिंह की निगाह भी जो तेजसिंह से बात कर रहे थे, उसी तिलिस्मी चबूतरे की तरफ ही थी।

यकायक चबूतरे के निचले हिस्से में रोशनी देखकर राजा वीरेन्द्रसिंह को ताज्जुब हुआ और उन्होंने तेजसिंह का ध्यान भी उसी तरफ दिलाया। उस रोशनी के सबब से साफ मालूम होता था कि चबूतरे का अगला हिस्सा, जो वीरेन्द्रसिंह की तरफ पड़ता था किवाड़ के पल्ले की तरफ जमीन के साथ लग गया है और दो आदमी एक गठरी लटकाये हुए चबूतरे से बाहर की तरफ ला रहे हैं। उन दोनों के बाहर आने के साथ ही चबूतरे के अन्दर वाली रोशनी बन्द हो गई और उन दोनों में से एक ने दूसरे के कंधे पर चढ़कर वह कंदील भी बुझा दी जो उस दालान में जल रही थी।

कंदील बुझ जाने से वहाँ अँधकार हो गया और इसके बाद मालूम न हुआ कि वहाँ क्या हुआ या क्या हो रहा है। तेजसिंह और वीरेन्द्रसिंह उसी समय उठ खड़े हुए और हाथ में नंगी तलवार लिए तथा एक आदमी को लालटेन लेकर वहाँ जाने की आज्ञा देकर उस दालान की तरफ रवाना हुए जिसमें तिलिस्मी चबूतरा था, मगर वहाँ जाकर सिवाय एक गठरी के जो उसी चबूतरे के पास पड़ी हुई थी और कुछ नजर न आया। जब आदमी लालटेन लेकर वहाँ पहुँचा तो तेजसिंह ने अच्छी तरह घूमकर जाँच की मगर नतीजा कुछ भी न निकला, न तो यहाँ कोई आदमी दिखाई दिया और न उस चबूतरे ही में किसी तरह के निशान या दरवाजे का पता लगा।

तेजसिंह ने जब वह गठरी खोली तो एक आदमी पर निगाह पड़ी। लालटेन की रोशनी में बड़े गौर देखने पर भी तेजसिंह या वीरेन्द्रसिंह उसे पहचान न सके अतः तेजसिंह ने उसी समय जफील बजाई जिसे सुनते ही कई सिपाही और खिदमतगार वहाँ इकट्ठे हो गये। इसके बाद वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह उस आदमी को उठवाकर राजा सुरेन्द्रसिंह के पास ले आए जो इस समय का शोरगुल सुनकर जाग चुके थे और इन्द्रजीतसिंह को अपने पास बुलवाकर कुछ बातें कर रहे थे।

उस बेहोश आदमी पर निगाह पड़ते ही इन्द्रजीतसिंह पहचान गये और बोल उठ––"यह तो बलभद्रसिंह हैं!"