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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१४१

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वीरेन्द्रसिंह––(ताज्जुब से) क्या? यही बलभद्रसिंह हैं जो यहाँ से गायब हो गये थे?

इन्द्रलीतसिंह––हाँ, यही हैं, ताज्जुब नहीं कि जिस अनूठे ढंग से यहाँ पहुँचाए गये हैं उसी ढंग से गायब भी हुए हों।

सुरेन्द्रसिंह––जरूर ऐसा ही हुआ होगा, भूतनाथ पर व्यर्थ का शक किया जाता था। अच्छा, अब इन्हें होश में लाने की फिक्र करो और भूतनाथ को बुलाओ।

तेजसिंह––जो आज्ञा!

सहज ही में बलभद्रसिंह चैतन्य हो गये और तब तक भूतनाथ भी वहाँ आ पहुँचा। राजा सुरेन्द्रसिंह, इन्द्रजीतसिंह और तेजसिंह को सलाम करने के बाद भूतनाथ बैठ गया और बलभद्रसिंह से बोला––

भूतनाथ––कहिये, कृपा-निधान, आप कहाँ छिप गये थे और कैसे प्रकट हो गये? सभी को मुझ पर सन्देह हो रहा है।

पाठक, इसके जवाब में बलभद्रसिंह ने यह नहीं कहा कि 'तुम्हीं ने तो मुझे बेहोश किया था' जिसके सुनने की शायद आप इस समय आशा करते होंगे, बल्कि बलभद्रसिंह ने यह जवाब दिया कि "नहीं, भूतनाथ, तुम पर कोई क्यों शक करेगा? तुमने ही तो मेरी जान बचाई है और तुम्हीं मेरे साथ दुश्मनी करोगे, ऐसा भला कौन कह सकता है?"

तेजसिंह––खैर, यह तो बताइये कि आपको कौन ले गया था और फिर कैसे ले वापस आया?

बलभद्रसिंह––इसका पता तो मुझे भी अभी तक नहीं लगा कि वे कौन थे जिनके पाले में पड़ गया था हाँ, जो कुछ मुझ पर बीती है उसे अर्ज कर सकता हूँ, मगर इस समय नहीं क्योंकि मेरी तबीयत कुछ खराब हो रही है। आशा है कि अगर मैं दो-तीन घण्टे सो सकूँगा तो सुबह तक ठीक हो जाऊँगा।

सुरन्द्रसिंह––कोई चिन्ता नहीं, आप इस समय जाकर आराम कीजिए।

इन्द्रजीतसिंह––यदि इच्छा हो तो अपने उसी पुराने डेरे में भूतनाथ के पास रहिए, नहीं तो कहिए आपके लिए दूसरे डेरे का इन्तजाम कर दिया जाये।

बलभद्रसिंह––जी नहीं, मैं अपने मित्र भूतनाथ के साथ ही रहना पसन्द करता हूँ।

बलभद्रसिंह को साथ लिए भूतनाथ अपने डेरे की तरफ रवाना हुआ, इधर राजा सुरेन्द्र सिंह, इन्द्रजीत, वीरेन्द्र सिंह और तेजसिंह उस तिलिस्मी चबूतरे तथा बलभद्रसिंह के बारे में बातचीत करने लगे तथा अन्त में यह निश्चय किया कि बलभद्रसिंह जो कुछ कहेंगे उस पर भरोसा न करके अपनी तरफ से इस बात का पता लगाना चाहिए कि उस तिलिस्मी चबूतरे की राह से आने-जाने वाले कौन हैं। उस दालान में ऐयारों का गुप्त पहरा मुकर्रर करना चाहिए।