पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
143
 

मैं––वह क्या?

मनोरमा––मुझे ठीक खबर लगी है कि कम्बख्त दारोगा ने तेरे बाप को गिरफ्तार कर लिया है। और इस समय वह काशी में मनोरमा के मकान में कैद है।

मैं––मनोरमा कौन?

मनोरमा––राजा गोपालसिंह की स्त्री लक्ष्मीदेवी (जिसे अब लोग मायारानी के नाम से पुकारते हैं) की सखी...

मैं––असली लक्ष्मीदेवी से तो गोपालसिंह की शादी हुई ही नहीं। वह बेचारी तो...

मनोरमा––(बात काटकर) हाँ-हाँ, यह हाल मुझे भी मालूम है। मगर इस समय जो राजरानी बनी हुई है, लोग तो उसी को लक्ष्मीदेवी समझे हुए हैं, इसी से मैंने उसे लक्ष्मीदेवी कहा।

मैं––(आँखों में आँसू भरकर) तो क्या मेरा बाप भी कैद हो गया?

मनोरमा––बेशक, मैंने उसके छुड़ाने का भी बन्दोबस्त कर लिया है, क्योंकि तुझे तो शायद मालूम ही होगा कि तेरे बाप ने मुझे भी थोड़ी-बहुत ऐयारी सिखा रखी है। अतः वही ऐयारी इस समय मेरे काम आई और आवेगी।

मैं––(ताज्जुब से) मुझे नहीं मालूम कि पिताजी ने तुम्हें ऐयारी कब सिखाई।

मनोरमा––ठीक है, तू उन दोनों बहुत नादान थी, इसलिए आज वे बातें तुझे याद नहीं हैं पर मेरा मतलब यही है कि मैं कुछ ऐयारी भी जानती हूँ और इस समय तेरे बाप को छुड़ा सकती हूँ।

मनोरमा की यह बात ऐसी थी कि मुझे उस पर शक हो सकता था। मगर उसकी मीठी-मीठी बातों ने मुझे धोखे में डाल दिया और सच तो यह है कि मेरी किस्मत में दुःख भोगना बदा था, अब मैंने कुछ सोचकर यही जवाब दिया कि "अच्छा जो उचित समझो सो करो। ऐयारी तो थोड़ी-सी मुझे भी आ गई है और इसका हाल भी मैं तुम्हें कह चुकी हूँ कि चम्पा ने मुझे अपनी चेली बना लिया है।"

मनोरमा––हाँ, ठीक है। तो अब सीधे काशी ही चलना चाहिए और वहाँ चलने का सबसे ज्यादा सुभीता डोंगी है, इसलिए जहाँ तक जल्द हो सके, गंगा किनारे चलना चाहिए, जहाँ कोई न कोई डोंगी मिल ही जायगी।

मैं––बहुत अच्छा, चलो।

उसी समय हम लोग गंगा की तरफ रवाना हो गये और उचित समय पर वहाँ पहुँचकर अपने योग्य डोंगी किराये पर ली। डोंगी किराये पर करने में किसी तरह की तकलीफ न हुई, क्योंकि वास्तव में डोंगी वाले भी उसी दुष्ट मनोरमा के नौकर थे, मगर उस कम्बख्त ने ऐसे ढंग से बातचीत की कि मुझे किसी तरह का शक न हुआ या यों समझिए कि मैं अपनी माँ से मिलकर एक तरह से कुछ निश्चिन्त सी हो रही थी। रास्ते ही में मनोरमा ने मल्लाहों से इस किस्म की बातें भी शुरू कर दी कि 'काशी पहुँचकर तुम्हीं लोग हमारे लिए एक छोटा-सा मकान भी किराए पर तलाश कर देना, इसके बदले मैं तुम्हें बहुत-कुछ इनाम दूँगी।'