पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१४२

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कुमार की आज्ञानुसार इन्दिरा ने अपना किस्सा यों बयान किया––

इन्दिरा––मैं कह चुकी हूँ कि ऐयारी का कुछ सामान लेकर जब मैं उस खोह के बाहर निकली और पहाड़ तथा जंगल पार करके मैदान में पहुँची, तो यकायक मेरी निगाह ऐसी चीज पर पड़ी जिसने मुझे चौंका दिया और मैं घबराकर उस तरफ देखने लगी।

जिस चीज को देखकर मैं चौंकी, वह एक कपड़ा था जो मुझसे थोड़ी ही दूर पर ऊँचे पेड़ की डाल के साथ लटक रहा था और उस पेड़ के नीचे मेरी माँ बैठी हुई कुछ सोच रही थी। जब मैं दौड़ती हुई उसके पास पहुँची तो वह ताज्जुब-भरी निगाहों से मेरी तरफ देखने लगी, क्योंकि उस समय ऐयारी से मेरी सूरत बदली हुई थी। मैंने बड़ी खुशी के साथ कहा, "माँ, तू यहाँ कैसे आ गई?" जिसे सुनते ही उसने उठकर मुझे गले से लगा लिया और कहा, "इन्दिरा, यह तेरा क्या हाल है? क्या तूने ऐयारी सीख ली है?" मैंने मुख्तसिर में अपना सब हाल बयान किया मगर उसने अपने विषय में केवल इतना ही कहा कि अपना किस्सा मैं आगे चलकर तुझसे बयान करूँगी, इस समय केवल इतना ही कहूँगी कि दारोगा ने मुझे एक पहाड़ी में कैद किया था जहाँ से एक स्त्री की सहायता पाकर परसों मैं निकल भागी, मगर अपने घर का रास्ता न पाने के कारण इधर-उधर भटक रही हूँ।

अफसोस उस समय मैंने बड़ा ही धोखा खाया और उसके सबब से मैं बड़े संकट में पड़ गई, क्योंकि वह वास्तव में मेरी माँ न थी, बल्कि मनोरमा थी और यह हाल मुझे कई दिनों के बाद मालूम हुआ। मैं मनोरमा को पहचानती न थी। मगर पीछे मालूम हुआ कि वह मायारानी की सखियों में से थी और गौहर के साथ वह वहाँ तक गई थी, मगर इसमें भी कोई शक नहीं कि वह बड़ी शैतान, बेदर्द और दुष्टा थी। मेरी किस्मत में दुःख भोगना बदा हुआ था जो मैं उसे माँ समझकर कई दिनों तक उसके साथ रही और उसने भी नहाने-धोने के समय अपने को मुझसे बहुत बचाया। प्रायः कई दिनों के बाद वह नहाया करती और कहती कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है।

साथ ही इसके यह भी शक हो सकता है कि उसने मुझे जान से क्यों नहीं मार डाला। इसके जवाब में मैं कह सकती हूँ कि वह मुझे जान से मार डालने के लिए तैयार थी। मगर वह भी उसी कम्बख्त दारोगा की तरह मुझसे कुछ लिखवाना चाहती थी। अगर मैं उसकी इच्छानुसार लिख देती तो वह निःसन्देह मुझे मारकर बखेड़ा तय करती मगर ऐसा न हुआ।

जब उसने मुझसे यह कहा कि 'रास्ते का पता न जानने के कारण मैं भटकली फिरती हूँ', तब मुझे एक तरह का तरद्दुद हुआ, मगर मैंने जो कुछ जोश के साथ उसी समय जवाब दिया––"कोई चिन्ता नहीं, मैं अपने मकान का पता लगा लूँगी।"

मनोरमा––मगर साथ ही इसके मुझे एक बात और भी कहनी है।