पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१४९

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इसका जवाब नानू ने कुछ न दिया और चुप हो रहा। इसके बाद मनोरमा की इच्छानुसार मैंने यों कहना शुरू किया––

मैं––मैंने इस पुर्जे को पढ़कर टुकड़े-टुकड़े कर डाला और फेंक दिया। इसके बाद नानू भी चला गया और मैं भी यहाँ आकर छत के ऊपर चढ़ गई और छिपकर उसी तरफ देखने लगी, जहाँ उस पुर्जे को फाड़ कर फेंक आई थी। थोड़ी देर बाद पुनः इसको (नानू को) उसी जगह पहुँचकर कागज के उन टुकड़ों को चुनते और बटोरते देखा। जब यह उन टुकड़ों को बटोर कर कमर में रख चुका और इस मकान की तरफ आया तो मैं भी तुरन्त छत पर से उतर कर इसके पास चली आई और बोली, "कहिए, अब मुझे कब यहाँ से बाहर कीजिएगा?" इसके जवाब में इसने कहा कि 'मैं रात को एकान्त में तुम्हारे पास आऊँगा, तो बातें करूँगा।" इतना कहकर यह चला गया और पुनः मैं बाग में टहलने लगी। जब अन्धकार हुआ, तो मैं घूमती हुई (हाथ का इशारा करके) उस झाड़ी की तरफ से निकली और किसी के बात की आहट पा पैर दबाती हुई आगे बढ़ी, यहाँ तक कि थोड़ी ही दूर पर दो आदमियों के बात करने की आवाज साफ-साफ सुनाई देने लगी। मैंने आवाज से नानू को तो पहचान लिया, मगर दूसरे को न पहचान सकी कि वह कौन था, हाँ पीछे मालूम हुआ कि वह बरदेबू था।

मनोरमा––अच्छा, खैर यह बता कि इन दोनों में क्या बातें हो रही थीं?

मैं––सब बातें तो मैं सुन न सकी, हाँ, जो कुछ सुनने और समझने में आया सो कहती हूँ। इस नानू ने दूसरे से कहा कि 'नहीं-नहीं, अब मैं अपना इरादा पक्का कर चुका हूँ और उस छोकरी को भी मेरी बातों पर पूरा विश्वास हो चुका है, निःसन्देह उसे ले जाकर मैं बहुत रुपये उसके बदले में पा सकूँगा, अगर तुम इस काम में मेरी मदद करोगे, तो मैं उसमें से आधी रकम तुम्हें दूँगा।' इसके जवाब में दूसरे ने कहा कि 'देखो नानू यह काम तुम्हारे योग्य नहीं है, मालिक के साथ दगा करने वाला कभी सुख नहीं भोग सकता, बेहतर है कि तुम मेरी बात मान जाओ नहीं तो तुम्हारे लिए अच्छा न होगा और मैं तुम्हारा दुश्मन बन जाऊँगा।' यह जवाब सुनते ही नानू क्रोध में आकर उसे बुरा-भला कहने और धमकाने लगा। उसी समय इसके सम्बोधन करने पर मुझे मालूम हुआ कि उस दूसरे का नाम बरदेबू है। खैर, जब मैंने जाना कि अब ये दोनों अलग होते हैं तो मैं चुपके से वहां से चल पड़ी और अपने कमरे में लेट रही। थोड़ी ही देर में यह मेरे पास पहुँचा और बोला, "बस अब जल्दी से उठ खड़ी हो और मेरे पीछे चली आओ क्योंकि अब वह मौका आ गया कि मैं तुम्हें इस आफत से बचाकर बाहर निकाल दूँ।" इसके जवाब मैं मैंने कहा कि 'बस रहने दीजिए, आपकी कलई खुल गई, मैं आपकी और बरदेबू की बातें छिपकर सुन चुकी हूँ, मां को आने दीजिए तो मैं आपकी खबर लेती हूँ।" इतना सुनते ही यह लाल-पीला होकर बोला कि 'खैर, देख लेना कि मैं तेरी खबर लेता हूँ या तू मेरी खबर लेती है।" बस, यह कहकर चला गया और थोड़ी देर में मैंने अपने को सख्त पहरे में पाया।

मनोरमा––ठीक है, अब मुझे असल बातों का पता लग गया।

नानू––(क्रोध के साथ) ऐसी तेज और धूर्त लड़की तो आज तक मैंने देखी ही