पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१५

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मायारानी––क्या जरूरत है?

लीला––क्यों, फिर इसे बेहोश किस लिए किया?

मायारानी––तुम खुद ही कह चुकी हो कि यह कुछ बताने वाला नहीं है, फिर मुश्कें बाँधने से मतलब?

लीला––आखिर फिर किया क्या जायगा?

मायारानी––पहले तुम इसकी तलाशी ले लो, फिर जो कुछ करना होगा, मैं तुम्हें बताऊँगी।

लीला––बहुत खूब, यह तुमने ठीक कहा

इस समय संध्या पूरे तौर पर हो चुकी थी, परन्तु चन्द्रदेव के दर्शन हो रहे थे, इसलिए यह नहीं कह सकते कि अन्धकार पल-पल में बढ़ता जाता था। लीला उस सवार की तलाशी लेने लगी और पहली ही दफा जेब में हाथ डालने से उसे दो चीजें मिलीं। एक तो हीरे की कीमती अँगूठी जिस पर राजा गोपालसिंह का नाम खुदा हुआ था और दूसरी चीज एक चिट्ठी थी जो लिफाफे के तौर पर लपेटी हुई थी।

चाहे अन्धकार न हो मगर चिट्ठी और अँगूठी पर खुदे हुए नाम को पढ़ने के लिए रोशनी की जरूरत थी और जब तक चिट्ठी का हाल मालूम न हो जाय तब तक कुछ काम करना या आगे तलाशी लेना उन दोनों को मंजूर न था, अतः लीला ने अपने ऐयारी के बटुए में से सामान निकाल कर रोशनी पैदा की और मायारानी ने सबसे पहले अँगूठी पर निगाह दौड़ाई। अँगूठी पर 'श्रीगोपाल' खुदा हुआ देख उसके रोंगटे खड़े हो गये फिर भी अपनी नबीयत सम्हाल कर वह चिट्ठी पढ़नी पड़ी। चिट्ठी में यह लिखा हुआ था––

"बेनीराम जोग लिखी गोपालसिंह––

आज हमने अपना पर्दा खोल दिया, कृष्ण जिन्न के नाम का अन्त हो गया, जिनके लिए यह स्वांग रचा गया था, उन्हें मालूम हो गया कि गोपालसिंह और कृष्ण जिन्न में कोई भी भेद नहीं है, अतः अब हमने काम-काज के लिए इस छोकरे को अपनी अँगूठी देकर विश्वास का पात्र बनाया है। जब तक यह अँगूठी इसके पास रहेगी तब तक इसका हुक्म हमारे हुक्म के बराबर सभी को मानना होगा। इसका बन्दोबस्त कर देना और दो सौ सवार तथा चार रथ बहुत जल्द पिपलिया घाटी में भेज देना। हम किशोरी, कामिनी, लक्ष्मीदेवी और कमलिनी वगैरह को लेकर आ रहे हैं। थोड़ा-सा जलपान का सामान उम्दा अलग भेजना। परसों रविवार की शाम तक हम लोग वहाँ पहुँच जायेंगे।"

इस चिट्ठी ने मायारानी का कलेजा दहला दिया और उसने घबरा कर इसे पढ़ने के लिए लीला के हाथ में दे दिया।

मायारानी––ओफ! मुझे स्वप्न में भी इस बात का गुमान न था कि कि कृष्ण जिन्न वास्तव में गोपालसिंह है! आह, जब मैं पिछली बातें याद करती हूँ तो कलेजा काँप जाता है और मालूम होता है कि गोपालसिंह ने मेरी तरफ से लापरवाही नहीं की बल्कि मुझे बुरी तरह से दुःख देने का इरादा कर लिया था। किशोरी, कामिनी और