पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१६

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कमला के बारे में भी...ओफ! बस अब मैं इस जगह दम भर भी नहीं ठहर सकती और ठहरना उचित भी नहीं है।

लीला––बेशक ऐसा ही है, मगर कोई हर्ज नहीं, आज यदि कृष्ण जिन्न का भेद खुल गया है तो यह (अँगूठी और चिट्ठी दिखा कर) चीजें भी बड़ी ही अनूठी मिल गई हैं। तुम बहुत जल्द देखोगी कि इस चिट्ठी और अँगूठी की बदौलत मैं कैसे-कैसे नामी ऐयारों की आँखों में धूल डालती हूँ और गोपालसिंह तथा उसके सहायकों को किस तरह तड़पा कर मारती हूँ। तुम यह भी देखोगी कि तुम्हारे उन लोगों ने जो ऐयारों का बाना पहने हुए थे और नामी ऐयार कहलाते थे, उसका पासंग भी नहीं किया जो मैं अब कर दिखाऊँगी। तो अब यहाँ से चलना चाहिए।

मायारानी––बहुत जल्द ही चलना चाहिए, मगर क्या इस छोकरे को जीता ही छोड़ जाओगी?

लीला––नहीं-नहीं, कदापि नहीं। क्या इसे मैं इसलिए जीता छोड़ जाऊँगी कि यह होश में आकर जमानिया या गोपालसिंह के पास चला जाय और मेरी कार्रवाइयों बट्टा लगाए!

इतना कह कर लीला ने खंजर निकाला और एक ही हाथ में बेचारे रामदीन का सिर काट दिया, तब लाश को उसी तरह छोड़ घोड़ी को होश में लाने का उद्योग करने लगी।

थोड़ी देर में घोड़ी भी चैतन्य हो गयी। उस समय लीला के कहे अनुसार मायारानी उस घोड़ी पर सवार हुई और दोनों ने वहाँ से हटकर एक घने जंगल का रास्ता लिया। लीला घोड़ी की रकाब थामे साथ-साथ बातें करती हुई जाने लगी।

मायारानी––यह मदद मुझे गैब से मिली है। यकायक रामदीन का मिल जाना और उसकी जेब में से अँगूठी तथा चिट्ठी का निकल आना कहे देता है कि मेरे बुरे दिन बहुत जल्द खत्म होना चाहते हैं।

लीला––इसमें क्या शक है! अबकी दफे तो राजा गोपालसिंह सचमुच हमारे कब्जे में आ गये हैं। अफसोस इतना ही है कि हम लोग अकेले हैं, अगर सौ-पचास आदमियों की भी मदद होती तो आज गोपालसिंह तथा किशोरी, लक्ष्मीदेवी और कमलिनी वगैरह को सहज ही में गिरफ्तार कर लेते।

मायारानी––अब उन लोगों को गिरफ्तार करने का खयाल तो बिल्कुल जाने दे और एकदम से उन लोगों को मारकर बखेड़ा निपटा डालने की ही फिक्र कर। इस अँगूठी और चिट्ठी के मिल जाने पर यह काम कोई मुश्किल नहीं है।

लीला––ठीक है, जो कुछ तुम चाहती हो, मैं पहले से समझे बैठी हूँ। मेरा इरादा है कि तुम्हें किसी अच्छी और हिफाजत की जगह पर छोड़कर मैं जमानिया जाऊँ और दीवान साहब से मिलूँ जिनके नाम गोपालसिंह ने यह चिट्ठी लिखी है।

मायारानी––बस, रामदीन छोकरे की सूरत बना ले और इसी घोड़ी पर सवार होकर चिट्ठी लेकर जा। इस चिट्ठी के अलावा भी तू जो कुछ दीवान को कहोगी वह उससे इन्कार न करेगा। गोपालसिंह के लिखे अनुसार जो कुछ खाने-पीने की चीजें तू