खड़ा हो गया और बोला, "शाबाश, तूने बड़ी चालाकी से मुझे बचा लिया और ऐसी बात गढ़ी कि मनोरमा को नानू पर ही पूरा शक हो गया और मैं इस आफत से बच गया नहीं तो नानू ने मुझे पूरी तरह फाँस लिया था, क्योंकि वह पुर्जा तो मेरा ही लिखा हुआ था, मैं तुझसे बहुत खुश हूँ और तुझे इस योग्य समझता हूँ कि तेरी सहायता करूँ।
मैं––आपको मेरी बातों का हाल क्यों कर मालूम हुआ?
वरदेबू––एक लौंडी की जबानी मालूम हुआ जो उस समय मनोरमा के पास खड़ी थी।
मैं––ठीक है, मुझे विश्वास है कि आप मेरी सहायता करेंगे और किसी तरह इस आफत से बाहर कर देंगे, मनोरमा के न रहने से अब मौका भी बहुत अच्छा है।
बरदेबू––बेशक मैं तुझे आफत से छुड़ाऊँगा, मगर आज ऐसा करने का मौका नहीं है, मनोरमा की मौजूदगी में यह काम अच्छी तरह हो जायेगा और मुझ पर किसी तरह का शक भी न होगा क्योंकि जाते समय मनोरमा तुझे मेरी हिफाजत में छोड़ गई है। इस समय मैं केवल इसलिए आया हूँ कि तुझे हर तरह की बातें समझा-बुझाकर यहाँ से निकल भागने की तर्कीव बता दूँ और साथ ही इसके यह भी कह दूँ कि तेरी माँ दारोगा की बदौलत जमानिया में तिलिस्म के अन्दर कैद है और इस बात की खबर गोपालसिंह को नहीं है। मगर मैं उनसे मिलने की तरकीब तुझे अच्छी तरह बता दूँगा।
वरदेबू घंटे भर तक मेरे पास बैठा रहा और उसने वहाँ की बहुत-सी बातें मुझे समझाईं और निकल भागने के लिए जो तरकीब सोची थी, वह भी कही जिसका हाल आगे चलकर मालूम होगा––साथ ही इसके बरदेबू ने मुझे यह भी समझा दिया कि मनोरमा की उँगली में एक अँगूठी रहती है, जिसका नोकीला नगीना बहुत ही जहरीला है, किसी के बदन में कहीं भी रगड़ देने से बात की बात में उसका तेज जहर तमाम बदन में फैल जाता है और तब सिवाय मनोरमा की मदद के वह किसी तरह नहीं बच सकता। वह जहर की दवाइयों को (जिन्हें मनोरमा ही जानती है) घोड़े का पेट चीरकर और उसकी ताजी आँतों में उनको रखकर तैयार करती है···
इतना सुनते ही कमलिनी ने रोक कर कहा, "हाँ-हाँ, यह बात मुझे भी मालूम है। जब मैं भूतनाथ के कागजात लेने वहाँ गई थी तो उसी कोठरी में एक घोड़े की दुर्दशा भी देखी थी, जिसमें नानू और बरदेबू की लाश देखी, अच्छा, तब क्या हुआ?" इसके जवाब में इन्दिरा ने फिर कहना शुरू किया।
इंदिरा बरदेबू मुझे समझा-बुझाकर और बेहोशी की दवा की दो पुड़िया देकर गया और उसी समय से मैं भी मनोरमा के आने का इन्तजार करने लगी। दो दिन तक वह न आई और इस बीच में पुनः दो दफे बरदेबू से बातचीत करने का मौका मिला। और सब बातें तो नहीं, मगर यह मैं इसी जगह कह देना उचित समझती हूँ कि बरदेबू ने वह दवा की पुड़ियाएँ मुझे क्यों दी थीं। उनमें से एक तो बेहोशी की दवा थी और दूसरी होश में लाने की। मनोरमा के यहाँ एक ब्राह्मणी थी, जो उसकी रसोई बनाती थी और उस मकान में रहने तथा पहरा देने वाली ग्यारह लौंड़ियों को भी उसी रसोई में से खाना मिलता था। इसके अतिरिक्त एक ठकुरानी और थी जो मांस बनाया करती