पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१५२

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थी। मनोरमा को मांस खाने का शौक था और प्रायः नित्य खाया करती थी। मांस ज्यादा बना करता और जो बच जाता वह सब लौंडियों नौकरों और मालियों को बाँट दिया जाता था। कभी-कभी मैं भी रसोई बनाने वाली मिसरानी या ठकुरानी के पास बैठकर उसके काम में सहायता कर दिया करती थी और वह बेहोशी की दवा बरदेबू ने इसीलिए दी थी कि समय आने पर खाने की चीजों तथा मांस इत्यादि में जहाँ तक हो सके मिला दी जाये।

आखिर मुझे अपने काम में सफलता प्राप्त हुई, अर्थात् चौथे या पाँचवें दिन संध्या के समय मनोरमा आ पहुँची और मांस के बटुए में बेहोशी की दवा मिला देने का भी मौका मुझे मिल गया।

रात के समय जब भोजन इत्यादि से छुट्टी पाकर मनोरमा अपने कमरे में बैठी तो उसने मुझे भी अपने पास बुलाकर बैठा लिया और बातें करने लगी। उस समय सिवाय हम दोनों के वहाँ और कोई भी न था।

मनोरमा––अबकी बार मेरा सफर बहुत अच्छा हुआ और मुझे बहुत-सी बातें नई मालूम हो गई जिससे तेरे बाप छुड़ाने में अब किसी तरह की कठिनाई नहीं रही। आशा है कि दो ही तीन दिन में वह कैद से छूट जायेंगे और हम लोग भी इस अनूठे भेष को छोड़कर अपने घर जा पहुँचेंगे।

मैं––तुम कहाँ गई थीं और क्या करके आई?

मनोरमा––मैं जमानिया गई थी। वहाँ के राजा गोपालसिंह की मायारानी तथा दारोगा से भी मुलाकात की। मायारानी ने वहाँ अपना पूरा दखल जमा लिया है और वहाँ की तथा तिलिस्म की बहुत-सी बातें उसे मालूम हो गई हैं। इसीलिए अब वह राजा गोपालसिंह को भी मार डालने का बन्दोबस्त कर रही है।

मैं––तिलिस्म कैसा?

मनोरमा––(ताज्जुब के हाथ) क्या तू नहीं जानती कि जमानिया का खास बाग एक बड़ा भारी तिलिस्म है?

मैं––नहीं, मुझे तो यह बात नहीं मालूम और तुमने भी कभी मुझे कुछ नहीं बताया।

यद्यपि मुझे जमानिया के तिलिस्म का हाल मालूम था और इस विषय की बहुत सी बातें अपनी माँ से सुन चुकी थी, मगर इस समय मनोरमा से यही कह दिया कि 'नहीं यह बात भी मालूम नहीं है और तुमने भी इस विषय में कभी कुछ नहीं कहा।' इसके जवाब में मनोरमा ने कहा, "हाँ ठीक है, मैंने नादान समझ कर तुझे वे बातें नहीं कही थीं।"

मैं––अच्छा तो यह बताओ कि मायारानी को थोड़े ही दिनों में वहां का सब हाल कैसे मालूम हो गया?

मनोरमा––ये सब बातें मुझे भी मालूम न थी, मगर दारोगा ने मुझको असली मनोरमा समझकर बता दिया, अतः जो कुछ उसकी जबानी सुनने में आया है सो तुझे कहती हूँ। मायारानी को वहाँ का हाल यकायक थोड़े ही दिनों में मालूम न हो जाता