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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१५४

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अँगूठी तेरी उँगली में नहीं है।

इतना सुनते ही वह चौंक पड़ी। इसके बाद और भी खूब बातें उससे हुई जिससे निश्चय हो गया कि मेरी ही करनी से वह बेहोश हुई थी और अब मैं उसके फेर में नहीं पड़ सकती। मैं उसे निःसन्देह जान से मार डालती, मगर बरदेबू ने ऐसा करने से मुझे मना कर दिया था। वह कह चुका था कि मैं तुझे इस कैद से छुड़ा तो देता हूँ, मगर मनोरमा की जान पर किसी तरह की आफत नहीं ला सकता, क्योंकि उसका नमक खा चुका हूँ।"

यही सबब था कि उस समय मैंने उसे केवल बातों की ही धमकी देकर छोड़ दिया। बची हुई बेहोशी की दवा जबर्दस्ती उसे सुँघा कर बेहोश करने के बाद मैं कमरे के बाहर निकली और बाग में चली आई जहाँ प्रतिज्ञानुसार बरदेबू खड़ा मेरी राह देख रहा था। उसने मेरे लिए एक खंजर और ऐयारी का बटुआ भी तैयार कर रक्खा था जो मुझे देकर उसके अन्दर की सब चीजों के बारे में अच्छी तरह समझा दिया और इसके बाद जिधर मालियों के रहने का मकान था उधर ले गया। माली तो सब बेहोश थे ही अतः कमन्द के सहारे मुझे बाग की दीवार के बाहर कर दिया और फिर मुझे मालूम न हुआ कि बरदेवू ने क्या कार्रवाइयाँ की और उस पर तथा मनोरमा इत्यादि पर क्या बीती।

मनोरमा के घर से बाहर निकलते ही मैं सीधे जमानिया की तरफ भागी क्योंकि एक तो अपनी माँ को छुड़ाने की फिक्र लगी हुई थी, जिसके लिए बरदेबू ने कुछ रास्ता भी बता दिया था, मगर इसके अलावा मेरी किस्मत में भी यही लिखा था कि बनिस्बत घर जाने के जमानिया को जाना पसन्द करूँ और वहाँ अपनी माँ की तरह खुद भी फँस जाऊँ। अगर मैं घर जाकर अपने पिता से मिलती और यह सब हाल कहती तो दुश्मनों का सत्यानश भी होता और मेरी माँ भी छूट जाती मगर सो न तो मुझको सूझा और न हुआ। इस सम्बन्ध में उस समय मुझको घड़ी-घड़ी इस बात का भी खयाल होता था मनोरमा मेरा पीछा जरूर करेगी, अगर मैं घर की तरफ जाऊँगी तो निःसन्देह गिरफ्तार हो जाऊँगी।

खैर, मुख्तसिर यह है कि बरदेबू के बताए हुए रास्ते से ही मैं इस तिलिस्म के अन्दर आ पहुँची। आप तो यहाँ की सब बात का भेद जान ही गए होंगे इसलिए विस्तार के साथ कहने की कोई जरूरत नहीं, केवल इतना ही कहना काफी होगा कि गंगा-किनारे वाले स्मशान पर जो महादेव का लिंग एक चबूतरे से ऊपर है वही रास्ता आने के लिए बरदेबू ने मुझे बताया था।

इन्दिरा ने अपना हाल यहाँ तक बयान किया था कि कमलिनी ने रोका और कहा, "हाँ-हाँ, उस रास्ते का हाल मुझे मालूम है। (कुमार से) जिस रास्ते से मैं आप लोगों को निकाल कर तिलिस्म के बाहर ले गई थी, वही!"[]

इन्द्रजीतसिंह––ठीक है, (इन्दिरा से) अच्छा तब क्या हुआ?


  1. देखिए आठवाँ भाग, दूसरे बयान का अन्त।