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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१५३

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और दारोगा भी इतनी जल्दी उसे होशियार न कर देता मगर उसके (मायारानी के) बाप ने उसे हर तरह से होशियार कर दिया है क्योंकि उसके बड़े लोग दीवान के तौर पर वहाँ की हुकूमत कर चुके हैं और इसीलिए उसके बाप को भी न मालूम किस तरह पर वहाँ की बहुत-सी बातें मालूम हैं।

मैं––खैर, इन सब बातों से मुझे कोई मतलब नहीं, यह बताओ कि मेरे पिता कहाँ हैं और उन्हें छुड़ाने के लिए तुमने क्या बन्दोबस्त किया! वह छूट जायें तो राजा गोपालसिंह को मायारानी के फन्दे से बचा लें। हम लोगों के किये इस बारे में कुछ न हो सकेगा।

मनोरमा––उन्हें छुड़ाने के लिए भी मैं सब बन्दोबस्त कर चुकी हूँ, देर बस इतनी ही है कि तू एक चिट्ठी गोपालसिंह के नाम की उसी मजमून की लिख दे, जिस मजमून की लिखने के लिए दारोगा तुझे कहता था। अफसोस इसी बात का है कि दारोगा को तेरा हाल मालूम हो गया है। वह तो मुझे नहीं पहचान सका, मगर इतना कहता था कि 'इन्दिरा को तूने अपनी लड़की बनाकर घर में रख लिया है, सो खैर तेरे मुलाहिजे से मै उसे छोड़ देता हूँ, मगर उसके हाथ से इस मजमून की चिट्ठी लिखाकर जरूर भेजनी होगा।' (कुछ रुककर) न मालूम क्यों मेरा सिर घूमता है।

मैं––खाने को ज्यादा खा गई होगी।

मनोरमा––नहीं, मगर···

इतना कहते-कहते मनोरमा ने गौर की निगाह से मुझे देखा और मैं अपने को बचाने की नीयत से उठ खड़ी हुई। उसने यह देखकर मुझे पकड़ने की नीयत से उठना चाहा मगर उठ न सकी और उस बेहोशी की दवा का पूरा-पूरा असर उस पर हो गया अर्थात् वह बेहोश होकर गिर पड़ी। उसी समय मैं उसके पास से चली आई और कमरे के बाहर निकली। चारों तरफ देखने से मालूम हुआ कि सब लौंडी, नौकर मिसरानी और माली वगैरह जहाँ-तहाँ बेहोश पड़े हैं, किसी को तन-बदन की सुध नहीं है। मैं एक जानी हुई जगह से मजबूत रस्सी लेकर पुनः मनोरमा के पास पहुँची और उसी से बूब जकड़ कर दूसरी पुड़िया सुँघा उसे होश में लाई। चैतन्य होने पर उसने हाथ में खंजर लिए मुझे अपने सामने खड़े पाया। वह उसी का खंजर था जो मैंने ले लिया था।

मनोरमा––हैं, यह क्या? तूने मेरी ऐसी दुर्दशा क्यों कर रक्खी है?

मैं––इसलिए कि तू वास्तव में मेरी माँ नहीं है और मुझे धोखा देकर यहाँ ले आई है।

मनोरमा––यह तुझे किसने कहा?

मैं––तेरी बातों और करतूतों ने।

मनोरमा––नहीं-नहीं, यह सब तेरा भ्रम है।

मैं––अगर यह सब मेरा भ्रम है और तू वास्तव में मेरी माँ है तो बता मेरे नाना ने अपने अन्तिम समय में क्या-क्या कहा था?

मनोरमा––(कुछ सोच कर) मेरे पास आ तो बताऊँ।

मैं––मैं तेरे पास भी आ सकती हूँ मगर तू इतना समझ ले कि अब वह जहरीली