करना चाहता हूँ!
गोपालसिंह––क्या हम लोग नहीं जानते कि इधर के कई दिन आपने कस तरह व्यर्थ नष्ट किए हैं और इस समय भी किस बेफिक्री के साथ बैठे गप्पें उड़ा रहे हैं?
इन्द्रजीतसिंह––(कुछ कहते-कहते रुक कर) जी नहीं, इस समय तो हम लोग इन्दिरा का किस्सा सुन रहे थे।
गोपालसिंह––इन्दिरा कहीं भागी नहीं जाती थी, यहाँ नहीं तो चुनार में हर तरह से बेफिक्र होकर आप इसका किस्सा सुन सकते थे जहाँ और भी कई अनूठे किस्से आप सुनेंगे। खैर, बताइए कि आप इन्दिरा का किस्सा सुन चुके या नहीं?
इन्द्रजीतसिंह––हाँ, और सब किस्सा तो सुन चुका, केवल इतना सुनना बाकी है कि आपकी वह तिलिस्मी किताब क्योंकर इसके हाथ लगी और यह उस पुतली की सूरत में क्यों वहाँ रहा करती थी।
गोपालसिंह––इतना किस्सा आप तिलिस्मी कार्रवाई से छुट्टी पाकर सुन लीजिएगा और अगर इस पर आपका ऐसा ही जी लगा हुआ है तो मैं मुख्तसिर में आपको समझाये देता हूँ क्योंकि मैं यह सब हाल इन्दिरा से सुन चुका हूँ। सचाई यह है कि मेरे यहाँ दो ऐयार हरनामसिंह और बिहारीसिंह रहते थे। वे रुपये की लालच में पड़ कर कम्बख्त मायारानी से मिल गए थे और मुझे कैदखाने में पहुँचाने के बाद वे लोग उसी की इच्छानुसार काम करते थे, मगर बुरी राह चलने वालों को या बुरों का संग करने वालों को जो कुछ फल मिला है वही उन्हें भी मिला, अर्थात् एक दिन मायारानी ने धोखा देकर उन्हें खास बाग के एक गुप्त कुएँ में ढकेल दिया[१] जिसके बारे में वह केवल इतना ही जानती थी कि वह तिलिस्मी ढंग का कुआँ लोगों को मार डालने के लिए बना हुआ है, मगर वास्तव में ऐसा नहीं है। वह कुआँ उन लोगों के लिए बना है जिन्हें तिलिस्म में कैद करना मंजूर होता है। मायारानी को चाहे यह निश्चय हो गया कि दोनों ऐयार मर गए, लेकिन वास्तव में वे मरे नहीं बल्कि तिलिस्म में कैद हो गये थे। इस बात को मायारानी बहुत दिनों तक छिपाये रही लेकिन आखिर एक दिन उसने अपनी लौंडी लीला से कह दिया और लीला से यह बात हरनाम सिंह की लड़की ने सुन ली
जब आपने मुझे कैद से छुड़ाया और मैं खुल्लमखुल्ला पुनः जमानिया का राजा बना, तब हरनामसिंह की लड़की फरियाद करने के लिए मेरे पास पहुँची और मुझसे वह हाल कहा। मैंने जवाब में कहा कि वे दोनों ऐयार उस कुएँ में धकेल देने से मरे नहीं हैं बल्कि तिलिस्म में कैद हो गए हैं जिन्हें मैं छुड़ा तो सकता हूँ, मगर उन दोनों ने मेरे साथ दगा की है इसलिए छुड़ाने योग्य नहीं हैं और न मैं उन्हें छुड़ाऊँगा ही। इतना सुन वह चली गई मगर छिपे-छिपे उसने ऐसा भेद लगाया और चालाकी की जिसे सुनेंगे तो दंग हो जायेंगे। मुख्तसिर यह कि अपने बाप को कैद से छुड़ाने की नीयत से उस लड़की ने मेरी तिलिस्मी किताब चुराई और उसकी मदद से तिलिस्म के अन्दर पहुँची, मगर उस
किताब का मतलब ठीक-ठीक न समझने के सबब वह न तो अपने बाप को छुड़ा सकी
- ↑ देखिए चन्द्रकान्ता सन्तति आठवाँ भाग,पाँचवाँ बयान।