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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१५७

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और न खुद ही तिलिस्म के बाहर निकल सकी। हाँ, उसी जगह अकस्मात् इन्दिरा से उसकी मुलाकात हो गई। इन्दिरा को भी अपनी तरह दुःखी जान कर उसने सब हाल इससे कहा और इन्दिरा ने चालाकी से वह किताब अपने कब्जे में कर ली तथा उससे बहुत-कुछ फायदा भी उठाया। तिलिस्म में आने-जाने वालों से अपने को बचाने के लिए इन्दिरा उस पुतली की सूरत बनकर रहने लगी, क्योंकि उसी ढंग के कपड़े इन्दिरा को उस पुतली वाले घर से मिल गए थे। जब मैंने इन्दिरा से यह हाल सुना तो बिहारीसिंह और हरनामसिंह तथा उसकी लड़की को बाहर निकाला। वे सब भी चुनारगढ़ पहुँचाए जा चुके हैं। अब जब आप चुनारगढ़ पहुंचेंगे तो औरों के साथ-साथ उन लोगों का भी तमाशा देखेंगे, तथा···

लक्ष्मीदेवी––(गोपालसिंह से) मगर आप इन बातों को इतनी जल्दी-जल्दी और संक्षेप में कहकर कुमारों को भगाना क्यों चाहते हैं? इन्हें यहाँ अगर एक दिन और देर ही हो जायगी तो क्या हर्ज है?

कमलिनी––मेहमानदारी के खयाल से जल्द छूटना चाहते हैं!

गोपालसिंह––औरतों का काम तो आवाज कसने का ही है, मगर मैं किसी और ही सबब से जल्दी मचा रहा हूँ। महाराज (वीरेन्द्रसिंह) के पत्र बराबर आ रहे हैं कि दोनों कुमारों को शीघ्र भेज दो, इसके अतिरिक्त वहाँ कैदियों का जमाव हो रहा है और नित्य एक नया रंग खिलता है। वहां जितनी आफतें थीं वह सब जाती हीं···

लक्ष्मीदेवी––(बात काट कर) तो कुमार को और हम लोगों को आप तिलिस्म के बाहर क्यों नहीं ले चलते? वहां से कुमार बहुत जल्दी चुनार पहुँच सकते हैं।

गोपालसिंह––(कुमार से) आप इस समय मेरे साथ तिलिस्म के बाहर जा सकते हैं मगर ऐसा होना न चाहिए। आप लोगों के हाथ से जो कुछ तिलिस्म टूटने वाला है उसे तोड़कर फिर इस तिलिस्म के अन्दर ही अन्दर से चुनार पहुँचना उचित होगा। जब आपकी शादी हो जाएगी तब मैं आपको यहाँ लाकर अच्छी तरह इस तिलिस्म की सैर कराऊँगा। इस समय मैं (किशोरी, कामिनी, इन्दिरा वगैरह की तरफ बता कर) इन सभी को लेकर खास बाग में जाता हूँ क्योंकि अब वहाँ सब तरह से शान्ति हो चुकी है और किसी तरह का अन्देशा नहीं वहाँ आठ-दस दिन रहकर फिर सभी को साथ ले मैं चुनार चला जाऊंगा और तब उसी जगह आपसे हम लोगों की मुलाकात होगी।

इन्द्रजीतसिंह––जो कुछ आप कहते हैं वही होगा, मगर यहाँ की अद्भुत बातें देखकर मेरे दिल में कई तरह का खुटका बना है...

गोपालसिंह––वह सब चुनार में निकल जायगा, यहाँ मैं आपको कुछ न बताऊँगा। देखिए, अब रात बीतना चाहती है, सवेरा होने के पहले ही आपको अपने काम में हाथ लगा देना चाहिए।

लक्ष्मीदेवी––(हँस कर) आप क्या आये, मानो भूचाल आ गया! अच्छी जल्दी मचाई, बात तक नहीं करने देते! (कुमार से) जरा इन्हें अच्छी तरह जाँच तो लीजिए, कहीं कोई ऐयार रूप बदलकर न आया हो।

गोपालसिंह––(इन्द्रजीतसिंह के कान में कुछ कहकर) बस, अब आप विलम्ब