पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१६७

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पोश से बातचीत की जाय।

तेजसिंह––(हाथ जोड़ कर) जो आज्ञा!

इतना कहकर तेजसिंह उठे और उस नकाबपोश को साथ लिए हुए एकान्त में चले गए।

इस नकाबपोश को देख कर सभी हैरान थे। इसकी सिपाहियाना, चुस्त और बेशकीमत पोशाक, इसका बहादुराना ढंग और इसकी अनूठी बातों ने सभी के दिल में खलबली पैदा कर दी थी, खास करके भूतनाथ के पेट में तो चूहे दौड़ने लग गये और उसने इस नकाबपोश की असलियत जानने का खयाल अपने दिल में मजबूती के साथ बाँध लिया था। यही कारण था कि जब थोड़ी देर बाद तेजसिंह उस नकाबपोश से बातें करके और उसको साथ लिए हुए वापस आए, तब सभी का ध्यान उसी तरफ चला गया और सभी यह जानने के लिए व्यग्र होने लगे कि देखें तेजसिंह क्या कहते हैं।

तेजसिंह ने अपने बाप जीतसिंह की तरफ देखकर कहा, "मेरे खयाल से इनकी प्रार्थना स्वीकार करने में कोई हर्ज नहीं है। यदि मान लिया जाय कि वे लोग हमारे साथ दुश्मनी भी रखते हों तो भी इसकी कुछ परवाह नहीं हो सकती और न वे लोग हमारा कुछ बिगाड़ ही सकते हैं।"

तेजसिंह की बात सुनकर जीतसिंह ने महाराज की तरफ देखा और कुछ इशारा पाकर नकाबपोश से कहा, "खैर, तुम्हारे मालिकों की प्रार्थना स्वीकार की जाती है। उनसे कह देना कि कल से नित्य एक पहर दिन चढ़ने के बाद इस दरगारे-खास में हाजिर हुआ करें।"


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नकाबपोश ने झुक कर सलाम किया और जिधर से आया था उसी तरफ लौट गया। थोड़ी देर तक और कुछ बातचीत होती रही। जिसके बाद सब कोई अपने-अपने ठिकाने चले गए। केवल महाराज सुरेन्द्रसिंह, वीरेन्द्रसिंह, जीतसिंह, तेजसिंह और गोपालसिंह रह गए और इन लोगों में कुछ देर तक उसी नकाबपोश के विषय में बातचीत होती रही। क्या-क्या बातें हुई, इसे हम इस जगह खोलना उचित नहीं समझते और न इसकी जरूरत देखते हैं। दूसरे दिन फिर उसी तरह का दरबारे-खास लगा जैसा पहले दिन लगा था और जिसका खुलासा हाल हम ऊपर के बयान में लिख आये हैं। आज के दरबार में वे दोनों नकाबपोश हाजिर होने वाले थे, जिनकी तरफ से कल एक नकाबपोश आया था। अतः राजा साहब की तरफ से कल ही सिपाहियों और चोबदारों को हुक्म मिल गया था कि जिस समय दोनों दोनों नकाबपोश आवें उसी समय बिना इत्तिला किए ही दरबार में पहुँचा दिए जायें । यही सबब था कि आज दरबार लगने के कुछ ही देर बाद एक चोब-