पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
172
 

भी आज के पहले आप लोगों ने न देखी होगी! (जयपाल से) मालूम होता है कि तू अपने दोस्त हेलासिंह की मौत का सबब भी किसी दूसरे को ही बताना चाहता है। मगर ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि मेरे दोस्त भूतनाथ मेरे साथ हेलासिंह के मामले का सबूत भी बेगम के मकान से लेते आये हैं।

भूतनाथ––हाँ-हाँ, वह सबूत भी मेरे पास मौजूद है जो सबसे ज्यादा मेरे खास मामले में काम देगा।

इतना कहकर भूतनाथ ने दो-चार कागज, दस-बारह पन्ने की एक किताब और हीरे की अँगूठी जिसके साथ छोटा-सा पुरजा बँधा हुआ था, अपने बटुए में से निकाल कर राजा गोपालसिंह के सामने रख दिया और कहा, "बेगम नौरतन और जमालो को भी तलब करना चाहिए।"

इन चीजों को गौर से देख कर राजा गोपालसिंह ताज्जुब और भूतनाथ का मुँह देखने लगे।

भूतनाथ––(गोपालसिंह से) आप जिस समय कृष्ण जिन्न की सूरत में थे, उस समय मैंने आपसे अर्ज किया था कि अपनी बेकसूरी का बहुत अच्छा सबूत किसी समय आपके सामने ला रखूँगा, सो यह सबूत मौजूद है, इसी से दोनों का काम चलेगा।

गोपालसिंह––(ताज्जुब के साथ) हाँ ठीक है, (वीरेन्द्रसिंह से) ये बड़े काम की चीजें भूतनाथ ने पेश की हैं। बेगम नौरतन और जमालो के हाजिर होने पर मैं इनका मतलब बयान करूँगा।

वीरेन्द्रसिंह ने तेजसिंह की तरफ देखा और तेजसिंह ने बेगम नौरतन और जमालो के हाजिर होने का हुक्म दिया। इस समय जयपाल का कलेजा उछल रहा था। वह उन चीजों को अच्छी तरह देख नहीं सकता था और न उसे इसी बात का गुमान था कि बेगम के यहाँ से भूतनाथ फलाँ चीजें ले आया है।

कैदियों की सूरत में बेगम नौरतन और जमालो हाजिर हुई। उस समय एक नकाबपोश ने, जिसने भूतनाथ की पेश की हुई चीजों को अच्छी तरह देख लिया था, गोपालसिंह से कहा, "मैं उम्मीद करता हूँ कि भूतनाथ की पेश की हुई इन चीजों का मतलब बनिस्बत आपके मैं ज्यादा अच्छी तरह बयान कर सकूँगा। यदि आप मेरी बातों पर विश्वास करके ये चीजें मेरे हवाले करें तो उत्तम हो।"

नकाबपोश की बातें सभी ने ताज्जुब के साथ सुनी, खास करके जयपाल ने, जिसकी विचित्र अवस्था हो रही थी। यद्यपि वह अपनी जान से हाथ धो बैठा था, मगर साथ ही इसके यह भी सोचे हुए था कि मेरी चालबाजियों में उलझे हुए भूतनाथ को कोई कदापि बचा नहीं सकता और इस समय भूतनाथ के मददगार जो आदमी हैं, वे लोग तभी भूतनाथ को बचा सकेंगे जब मेरी बातों पर पर्दा डालेंगे या मेरे कसूरों की माफी दिला देंगे, तथा जब तक ऐसा न होगा मैं कभी भूतनाथ को अपने पंजे से निकलने न दूँगा। यही सबब था कि ऐसी अवस्था में भी वह बोलने और बातें बनाने से बाज नहीं आता था।

नकाबपोश की बात सुनकर राजा गोपालसिंह ने मुस्करा दिया और भूतनाथ की