पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१७८

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बस इससे ज्यादा और कुछ न कह सकी, एक दफे काँपकर बेहोश हो गई और जयपाल भी जमीन पर गिरकर बेहोश हो गया, अतएव मुकदमे की कार्रवाई रोक देनी पड़ी।

भूतनाथ तथा हमारे ऐयारों को विश्वास था कि यह दूसरा नकाबपोश वही होगा जिसने पहले दिन सूरत दिखलाई थी, मगर ऐसा न था। उस सूरत और इस सूरत में जमीन-आसमान का फर्क था, अतएव सभी ने निश्चय कर लिया कि वह कोई दूसरा था और यह कोई और है।

इस सूरत को भी भूतनाथ पहचानता न था। उसके ताज्जुब की हद न रही और उसने निश्चय कर लिया कि आज इनकी खबर जरूर ली जायगी। और यही कैफियत हमारे ऐयारों की भी थी।

कैदी पुनः कैदखाने में भेज दिये गये, दोनों नकाबपोश बिदा हुए और दरबार बर्खास्त किया गया।


13

दरबार बर्खास्त होने के बाद जब महाराज सुरेन्द्रसिंह, जीतसिंह, वीरेन्द्रसिंह, तेजसिंह, गोपालसिंह और देवीसिंह एकान्त में बैठे तो यों बातचीत होने लगी।

सुरेन्द्रसिंह––ये दोनों नकाबपोश तो विचित्र तमाशा कर रहे हैं। मालूम होता है कि इन सब मामलों की सबसे ज्यादा खबर इन्हीं लोगों को है।

जीतसिंह––बेशक ऐसा ही है।

वीरेन्द्रसिंह––जिस तरह इन दोनों ने तीन दफे में तीन तरह की सूरतें दिखाई इसी से मालूम होता है और भी कई दफे कई तरह की सूरतें दिखायेंगे।

गोपालसिंह––निःसन्देह ऐसा ही होगा। मैं समझता हूँ कि या तो ये अपनी सूरत बदलकर आया करते हैं या दोनों केवल दो ही नहीं हैं और भी कई आदमी हैं जो पारी-पारी से आकर लोगों को ताज्जुब में डालते हैं और डालेंगे।

तेजसिंह––मेरा भी यही खयाल है। भूतनाथ के दिल में भी खलबली पैदा हो रही है। उसके चेहरे से मालूम होता था कि वह इन लोगों का पता लगाने के लिए परेशान हो रहा है।

देवीसिंह––भूतनाथ का ऐसा विचार कोई ताज्जुब को बात नहीं। जब हम लोग उनका हाल जानने के लिए व्याकुल हो रहे हैं, तब भूतनाथ का क्या कहना है।

सुरेन्द्रसिंह––इन लोगों ने मुकदमे की उलझन खोजने का ढंग तो अच्छा निकाला है, मगर यह मालूम करना चाहिए कि इन मामलों से इन्हें क्या सम्बन्ध है?

देवीसिंह––अगर आज्ञा हो तो मैं उनका हाल जानने के लिए उद्योग करूँ?

वीरेन्द्रसिंह––कहीं ऐसा न हो कि पीछा करने से ये लोग बिगड़ जायें और फिर