यहाँ आने का इरादा न करें।
गोपालसिंह––मेरे खयाल से तो उन लोगों को इस बात का रंज न होगा कि लोग उनका हाल जानने के लिए पीछा कर रहे हैं, क्योंकि उन लोगों ने काम ही ऐसा उठाया है कि सैकड़ों आदमियों को ताज्जुब हो और सैकड़ों ही उनका पीछा भी करें। इस बात को वे लोग खूब ही समझते होंगे और इस बात का भी उन्हें विश्वास होगा कि भूतनाथ उनका हाल जानने के लिए सबसे ज्यादा कोशिश करेगा।
वीरेन्द्रसिंह––ठीक है और इसी खयाल से वे लोग हर वक्त चौकन्ने भी रहते हों तो कोई ताज्जुब नहीं।
जीतसिंह––जरूर चौकन्ने रहते होंगे और ऐसी अवस्था में पता लगाना भी कठिन होगा।
गोपालसिंह––जो हो, मगर मेरी इच्छा तो यही है कि स्वयं उनका हाल जानने के लिए उद्योग करूँ
सुरेन्द्रसिंह––अगर उनके मामले में पता लगाने की इच्छा ही है तो क्या तुम्हारे यहाँ ऐयारों की कमी है जो तुम स्वयं कष्ट करोगे? तेजसिंह, देवीसिंह, पण्डित बद्रीनाथ या और जिसे चाहो इस काम पर मुकर्रर करो।
गोपालसिंह––जो आज्ञा, देवीसिंह कहते ही हैं तो इन्हींको यह काम सुपुर्द किया जाय।
सुरेन्द्रसिंह––(देवीसिंह से) जाओ तुम, तुम ही इस काम में उद्योग करो, देखें क्या खबर लाते हो।
देवीसिंह––(सलाम करके) जो आज्ञा।
गोपालसिंह––और इस बात का भी पता लगाना कि भूतनाथ उनका पीछा करता है या नहीं।
देवीसिंह––जरूर पता लगाऊँगा।
इस बात से छुट्टी पाने के बाद थोड़ी देर तक और बातें हुईं, इसके बाद महाराज आराम करने चले गये तथा और लोग भी अपने ठिकाने पधारे।
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सबसे ज्यादा फिक्र भूतनाथ को इस बात के जानने की थी कि वे दोनों नकाबपोश कौन हैं और दारोगा, जयपाल तथा बेगम का उन सूरतों से क्या संबंध है जो समय-समय पर नकाबपोशों ने दिखाई थीं या हमारे तथा राजा गोपालसिंह और लक्ष्मीदेवी इत्यादि के सम्बन्ध में हम लोगों से भी ज्यादा जानकारी इन नकाबपोशों को क्योंकर हुई तथा ये दोनों वास्तव में दो ही हैं या कई।
इन्हीं बातों के सोच-विचार में भूतनाथ का दिमाग चक्कर खा रहा था। यों तो उस दरबार में जितने भी आदमी थे, सभी उन दोनों नकाबपोशों का हाल जानने के लिए