पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१९२

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और तब भूतनाथ ने भी देखा कि वह एक बहुत बड़ी और आदमी के कद के बराबर तस्वीर है।

उस तस्वीर पर निगाह पड़ते ही भूतनाथ की अवस्था बिगड़ गई और वह डर के मारे थरथर काँपने लगा। बहुत कोशिश करने पर भी वह अपने को सम्हाल न सका और उसके मुँह से एक चीख की आवाज निकल ही गई अर्थात् वह चिल्ला उठा। उसी समय उसने यह भी देखा कि आवाज उन लोगों के कानों में पहुँच गई और इस सबब से वे लोग ताज्जुब के साथ ऊपर की तरफ देखने लगे।

भूतनाथ जल्दी के साथ चारपाई से नीचे उधर आया और काँपती हुई आवाज में देवीसिंह से बोला, "ओफ, मैं अपने को सम्हाल नहीं सका और मेरे मुँह से चीख की आवाज निकल ही गई जिसे उन लोगों ने सुन लिया। ताज्जुब नहीं कि उन लोगों में से कोई यहाँ आये, अस्तु आप जो उचित समझिये कीजिये, कुछ देर बाद मैं अपना हाल आपसे कहूँगा।" इतना कह भूतनाथ जमीन पर बैठ गया।

देवीसिंह ने झटपट अपने बटुए में से सामान निकालकर मोमबत्ता जलाई, दो-तीन डपट की बातें कह भूतनाथ को चैतन्य किया और उसके मोढ़े पर चढ़कर कन्दील जलाने के बाद मोमबत्ती बुझाकर बटुए रख ली और इसके बाद दोनों चारपाई उसी तरह दुरुस्त कर दी जिस तरह पहले थीं, इसके बाद एक चारपाई पर भूतनाथ को सुला कर पेट-दर्द का बहाना करने और 'हाय-हाय' करके कराहने के लिए कहकर आप उसी चारपाई के सहारे बैठ गये। उसी समय कमरे का दरवाजा खुला और तीन-चार नकाबपोश अन्दर आते हुए दिखाई पड़े।

उन आदमियों ने पहले तो गौर से कमरे के अन्दर की अवस्था देखी और तब उनमें से एक ने आगे बढ़कर देवीसिंह से पूछा, "क्या अभी तक आप लोग जाग रहे हैं?"

देवीसिंह––हाँ (भूतनाथ की तरफ इशारा करके) इनके पेट में यकायक दर्द पैदा हो गया और बड़ी तकलीफ है, अक्सर दर्द की तकलीफ से चिल्ला उठते हैं।

नकाबपोश––(भूतनाथ की तरफ देख के) आज यहाँ कुछ खाने में भी तो नहीं आया।

देवीसिंह––पहले ही की कुछ कसर होगी।

नकाबपोश––फिर कुछ दवा वगैरह का बन्दोबस्त किया जाय?

देवीसिंह––मैंने दो दफे दवा खिलाई है, अब तो कुछ आराम हो रहा है, पहले बड़ी तेजी पर था।

इतना सुनकर वे लोग चले गये और जाते समय पहले की तरह दरवाजा पुनः बन्द करते गये।

अब फिर उस कमरे में सन्नाटा हो गया और भूतनाथ तथा देवीसिंह को धीरे-धीरे बातचीत करने का मौका मिला।

देवीसिंह––हाँ अब बताओ तुमने पिछले कमरे में क्या देखा और तुम्हारे मुँह से चीख की आवाज क्यों निकल गईं?

भूतनाथ––ओफ, मेरे प्यारे दोस्त देवीसिंह, क्योंकि अब मैं आपको खुशी और