पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
193
 

सच्चे दिल से अपना दोस्त कह सकता हूँ चाहे आप मुझसे हर तरह पर बड़े क्यों न हों, उस कमरे में जो कुछ मैंने देखा, वह मुझे दहला देने के लिए काफी था। पहले तो वहाँ मैंने अपने लड़के को देखा जिसे उम्मीद है कि आपने भी देखा होगा।

देवीसिंह––बेशक उसे मैंने देखा था, मगर शक मिटाने के लिए तुम्हें दिखाना पड़ा, चाहे वह कोई ऐयार ही सूरत बदले क्यों न हो, मगर शक्ल ठीक वैसी ही थी।

भूतसिंह––अगर उसकी सूरत बनावटी नहीं है तो वह मेरा लड़का हरनामसिंह ही है, खैर उसके बारे में तो मुझे कुछ ज्यादा तरद्दुद न हुआ मगर उसके कुछ ही देर बाद मैंने एक ऐसी चीज देखी कि जिससे मुझे हौल हो गया और मेरे मुँह से चीख की आवाज निकल पड़ी।

देवीसिंह––वह क्या चीज थी?

भूतनाथ––एक बहुत बड़ी तस्वीर थी जिसे एक आदमी ने पहुँच कर उन नकाबपोशों के आगे रख दिया जो गद्दी पर बैठे हुए थे और कहा, "बस, मैं इसी का दावा भूतनाथ पर करूँगा।"

देवीसिंह––वह किसकी तस्वीर थी, किसी मर्द की या औरत की?

भूतनाथ––(एक लम्बी साँस लेकर) वह औरत-मर्द, जंगल-पहाड़, बस्ती-उजाड़ सभी की तस्वीर थी, मैं क्या बताऊँ कि किसकी तस्वीर थी। एक यही बात है जिसे मैं अपने मुँह से नहीं निकाल सकता! मगर अब मैं आपसे कोई बात न छिपाऊँगा चाहे कुछ भी क्यों न हो। आप यह अच्छी तरह जानते ही हैं कि मैं उस पीतल की संदूकड़ी से कितना डरता हूँ जो नकली बलभद्रसिंह की दी हुई अभी तक तेजसिंह के पास है।

देवीसिंह––मैं खूब जानाता हूँ और उस दिन भी मेरा खयाल उसी सन्दूकड़ी की तरफ चला गया था जब एक नकाबपोश ने दरबार में खड़े होकर तुम्हारी तारीफ की थी और तुम्हें मुँहमाँगा इनाम देने के लिए कहा था।

भूतनाथ––ठीक है, बलभद्रसिंह ने भी मुझे यही कहा था कि 'ये नकाबपोश तुम्हारे मददगार हैं और तुम्हारा भेद ढके रहने के लिए महाराज से यह सन्दूकड़ी तुम्हें दिलाना चाहते हैं। मैं भी यह सोचकर प्रसन्न था और चाहता था कि मुकदमा फैसल होने के पहले ही इनाम माँगने का मुझे कोई मौका मिला जाय, मगर इस तस्वीर ने जिसे मैं अभी देख चुका हूँ मेरी हिम्मत तोड़ दी और मैं पुनः अपनी जिन्दगी से नाउम्मीद हो गया हूँ।

देवीसिंह––तो उस सन्दूकड़ी से और इस तस्वीर से क्या सम्बन्ध?

भूतसिंह––वह सन्दूकड़ी अपने पेट में जिस भेद को छिपाये हुए है उसी भेद को यह तस्वीर प्रकट करती है। इसके अतिरिक्त मैं सोचे हुए था कि अब उसका कोई दावेदार नहीं है मगर अब मालूम हो गया कि उसका दावेदार भी आ पहुंचा और उसी ने यह तस्वीर नकाबपोश के आगे पेश की!

देवीसिंह––क्या तुम यह नहीं बता सकते कि उस सन्दूकड़ी और इस तस्वीर मे क्या भेद है?

भूतसिंह––(लम्बी साँस लेकर) अब मैं आपसे कोई बात छिपा न रक्खूँगा मगर