पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२०४

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आँखों से भूतनाथ की तरफ देखा और कहा, "एक तो तुमने जबरदस्ती मेरी नकाब उल दी, दूसरे बिना कुछ सोचे-विचारे आवारा लोगों की तरह यह कह दिया कि 'यह मेरी स्त्री है।' क्या सभ्यता इसी को कहते हैं? (देवी सिंह की तरफ देखकर) आप ऐसे सज्जन और प्रतापी राजा वीरेन्द्रसिंह के ऐयार होकर क्या इस बात को पसन्द करते हैं?"

देवीसिंह––अगर तुम भूतनाथ की स्त्री नहीं हो तो मैं जरूर इस बर्ताव को बुरा समझता हूँ, जो भूतनाथ ने तुम्हारे साथ किया है।

औरत––(भूतनाथ से) क्यों साहब, आपने मेरी ऐसी बेइज्जती क्यों की? अगर मेरा मालिक या कोई वारिस इस समय यहाँ होता तो अपने दिल में क्या कहता?

भूतनाथ––(ताज्जुब से उसका मुँह देखता हुआ) क्या मैं भ्रम में पड़ा हुआ हूँ, या मेरी आँखें मेरे साथ दगा कर रही हैं?

औरत––सो तो आप ही जानें, क्योंकि दिमाग आपका है और आँखें भी आपकी हैं, हाँ, इतना मुझे अवश्य कहना पड़ेगा कि आप अपनी सभ्यता का परिचय देकर पुरानी बदनामी को चरितार्थ करते हैं। कौन-सी बात आपने मुझमें ऐसी देखी जिससे इतना कहने का साहस आपको हुआ?

भूतनाथ––मालूम होता है कि या तो तू कोई ऐयार है और या फिर किसी दूसरे ने तेरी सूरत मेरी स्त्री के ढंग की बना दी है, जिसे शायद तूने कभी देखा नहीं।

भूतनाथ ने उस औरत की बातों का जवाब तो दिया मगर वास्तव में वह खुद बहुत घबरा गया था। अपनी स्त्री की ढिठाई और चपलता पर उसे तरह-तरह के शक होने लगे और वह बड़ी बेचैनी के साथ सोच रहा था कि अब क्या करना चाहिए कि इसी बीच में उस स्त्री ने भूतनाथ की बात का यों जवाब दिया––

स्त्री––यों आप जिस तरह चाहें सोच-समझकर अपनी तबीयत खुश कर लें, मगर इस बात को खूब समझ रखें कि मैं भी लावारिस नहीं हूँ, और आप अगर मेरे साथ कोई बेअदबी का बर्ताव करेंगे तो उसका बदला भी अवश्य पायेंगे। साथ ही इस बात को भी अवश्य समझ लें, कि आपके इतना कहने पर कि तू कोई ऐयार है, आपके सामने अपना चेहरा धोने की बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर सकती।

भूतनाथ––अफसोस है कि मैं बिना जाँच किए तुम्हें छोड़ भी नहीं सकता।

स्त्री––(देवीसिंह की तरफ देखकर) बहादुरी तो तब थी, जब आप लोग किसी मर्द के साथ इस ढिठाई का बर्ताव करते। एक कमजोर औरत को इस तरह मजबूर करके फजीहत करना, ऐयारों और बहादुरों का काम नहीं है। हाय, इस जगह अगर मेरा कोई होता तो यह दुःख न भोगना पड़ता। (यह कहकर वह आँसू बहाने लगी।)

उस औरत की बातचीत कुछ ऐसे ढंग की थी, कि सुनने वालों को उस पर दया आ सकती थी और यही मालूम होता था कि यह जो कुछ कह रही है, उसमें नहीं है, यहाँ तक कि स्वयं भूतनाथ को भी उसकी बातों पर सहम जाना पड़ा और वह ताज्जुब के साथ उस औरत का मुँह देखने लगा, खास करके इस खयाल से भी कि देखें आँसू बहने के सबब से उसके चेहरे का रंग कुछ बदलता है या नहीं। उधर देवीसिंह तो उसकी बातों से बहुत ही हैरान हो गये और उनके जी में रह-रहकर यह बात पैदा होने