पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२१०

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इतना कह कर देवीसिंह उस कुर्सी पर बैठ गये जिस पर थोड़ी ही देर पहले चम्पा बैठी हुई तस्वीर बना रही थी और बड़े गौर से उस तस्वीर को देखने लगे, चम्पा भी कुर्सी की पिछवाई पकड़ कर खड़ी हो गई और देखने लगी। देखते-देखते देवीसिंह ने झट हलके जर्द रंग की प्याली और कूची उठा ली और उस तस्वीर में रोहतासगढ़ किले के ऊपर एक बुर्ज और उसके साथ सटे हुए पताके का साधारण निशान बनाया अर्थात् जमीन बाँधी जिसे देखते ही चम्पा चौंकी और बोली, "हाँ-हाँ ठीक है, यह बनाना तो मैं भूल ही गई थी। बस अब आप रहने दीजिये, इसे भी मैं ही अपने हाथ से बनाऊँगी, आप देखकर कहियेगा कि तस्वीर कैसी बनी और इसमें कौन सी बात छूट गई थी।"

चम्पा की इस बात को सुन देवीसिंह चौक पड़े। अब उन्हें पूरा-पूरा विश्वास हो गया कि चम्पा उन नकाबपोशों के मकान जरूर गई थी और मैंने निःसन्देह इसी को देखा था अतः देवीसिंह ने घूमकर चम्पा की तरफ देखा और कहा, "मगर पहले यह तो बताओ कि वहाँ मुझे देखकर तुम भाग क्यों गई थीं?"

चम्पा––(ताज्जुब की सूरत बना के) कहाँ? कब?

देवीसिंह––उन्हीं नकाबपोशों के यहाँ!

चम्पा––मुझे बिल्कुल याद नहीं पड़ता कि आप कब की बात कर रहे हैं।

देवीसिंह––अब लगीं न नखरा करके परेशान करने!

चम्पा––मैं आपके चरणों की कसम खाकर कहती हूँ कि मुझे कुछ याद नहीं कि आप कब की बात कर रहे हैं।

अब तो देवीसिंह के ताज्जुब की कोई हद न रही, क्योंकि वे खूब जानते थे कि चम्पा जितनी खूबसूरत और ऐयारी के फन में तेज है, उतनी ही नेक और पतिव्रता भी है। वह उनके चरणों की कसम खाकर झूठ कदापि नहीं बोल सकती। अतः कुछ देर तक ताज्जुब के साथ गौर करने के बाद पुनः देवीसिंह ने कहा, "आखिर कल या परसों तुम कहां गई थीं?"

चम्पा––मैं तो कहीं नहीं गई! आप महारानी चन्द्रकान्ता से पूछ लें क्योंकि मेरा उनका तो दिन-रात का संग है, अगर मैं कहीं जाती तो किसी काम से ही जाती और ऐसी अवस्था में आपसे छिपाने की जरूरत ही क्या थी?

देवीसिंह––फिर यह तस्वीर तुमने कहाँ देखी?

चम्पा––यह तस्वीर? मैं···

इतना कह चम्पा कपड़े का एक लपेटा हुआ पुलिन्दा उठा लाई और देवीसिंह के हाथ में दिया। देवीसिंह ने उसे खोलकर देखा और चौंक कर चम्पा से पूछा, "यह नक्शा तुम्हें कहाँ से मिला?"

चम्पा––यह नक्शा मुझे कहाँ से मिला, सो मैं पीछे कहूँगी, पहले आप यह बतावें कि इस नक्शे को देखकर आप क्यों चौंके और यह नक्शा वास्तव में कहाँ का है? क्योंकि मैं इसके बारे में कुछ भी नहीं जानती।

देवीसिंह––यह नक्शा उन्हीं नकाबपोशों के मकान का है जिनके बारे में मैं अभी तुमसे पूछ रहा था।