पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२१२

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देवीसिंह––इसी कम्बख्त ने तो मुझे इस आनन्द के समय में आपसे मिलने पर मजबूर किया।

वीरेन्द्रसिंह––सो क्या? (चारपाई पर बैठकर) बैठ के बात करो।

देवीसिंह ने महल में चम्पा के पास जाकर जो कुछ देखा और सुना था सब बयान किया, इसके बाद वह कपड़े वाली तस्वीर खोलकर दिखाई तथा उस नक्शे को भी अच्छी तरह समझाने के बाद कहा, "न मालूम यह नक्शा तारा को क्योंकर और कहाँ से मिला और उसने इसे अपनी माँ को क्यों दे दिया!"

वीरेन्द्रसिंह––तारासिंह से तुमने क्यों नहीं पूछा?

देवीसिंह––अभी तो मैं सीघा यहाँ आप ही के पास चला आया हूँ। अब जो कुछ मुनासिब हो सो किया जाय। कहिए तो लड़के को इसी जगह बुलाऊँ?

वीरेन्द्रसिंह––क्या हर्ज है, किसी को कहो बुला लावे।

देवीसिंह कमरे के बाहर निकले और पहरे के एक सिपाही को तारासिंह को बुलाने की आज्ञा देकर पुनः कमरे में चले गये और राजा साहब से बातचीत करने लगे। थोड़ी देर में पहरे वाले ने वापस आकर अर्ज किया कि "तारासिंह से मुलाकात नहीं हुई और इसका भी पता न लगा कि वे कब और कहाँ गये हैं, उनका खिदमतगार कहता है कि संध्या होने के पहले ही से उनका पता नहीं है।"

बेशक यह बात ताज्जुब की थी। रात के समय बिना आज्ञा लिए तारासिंह का गैरहाजिर रहना सभी को ताज्जुब में डाल सकता था, मगर राजा वीरेन्द्रसिंह ने यह सोचा कि आखिर तारासिंह ऐयार है, शायद किसी काम की जरूरत समझकर कहीं चला गया हो, अतः राजा साहब ने भैरोंसिंह को तलब किया और थोड़ी ही देर में भैरोंसिंह ने हाजिर होकर सलाम किया।

वीरेन्द्रसिंह––(भैरोंसिंह से) क्या तुम जानते हो कि तारासिंह क्यों और कहाँ गया है?

भैरोंसिंह––तारा तो आज संध्या होने के पहले ही से गायब है, पहर भर दिन बाकी था जब वह मुझसे मिला था। उसे तरद्दुद में देखकर मैंने पूछा भी था कि आज तुम तरद्दुद में क्यों मालूम पड़ते हो, मगर इसका उसने कोई जवाब नहीं दिया।

वीरेन्द्रसिंह––ताज्जुब की बात है! हमें उम्मीद थी कि तुम्हें उसका हाल मालूम होगा।

भैरोंसिंह––क्या मैं सुन सकता हूँ कि इस समय उसे याद करने की जरूरत क्यों पड़ी?

वीरेन्द्रसिंह––जरूर सुन सकते हो।

इतना कहकर वीरेन्द्रसिंह ने देवीसिंह की तरफ देखा और देवीसिंह ने कुछ कमवेश अपना और भूतनाथ का किस्सा बयान करने के बाद उस तस्वीर का हाल कहा और तस्वीर भी दिखाई। अन्त में भैरोंसिंह ने कहा, "मुझे कुछ भी मालूम नहीं कि तारासिंह को यह तस्वीर कब और कहाँ से मिली, मगर अब इसका हाल जानने की कोशिश जरूर करूँगा।"

च॰ स॰-5-13